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ऋतुसंहार
845 अपनी प्यारियों के मुखड़ों पर रीझे हुए प्रेमियों को यह कोयल भी अपनी मीठी कूक सुना-सुनाकर मारे डाल रही है।
1.
मृग मृग - [मृग + क] चौपाया जानवर, हरिण, बारहसिंगा। मृगाः प्रचण्डातपतापिता भृशं तृषामहत्या परिशुष्क तालवः। 1/11 जलते हुए सूर्य की किरणों से झुलसे जिन हरिणों की जीभ प्यास से बहुत सूख गई है। प्रसरति तृणमध्ये लब्धवृद्धिः क्षणेन ग्लपयति मृगवर्गं प्रान्तलग्नो दवाग्निः। 1/25 अग्नि की लपट, पहाड़ की घाटियों में फैलती हुई सभी पशुओं व हरिणों को जलाए डाल रही है और क्षण भर में आगे बढ़कर घास पकड़ लेती है। विलोलनेत्रोत्पलशोभिताननैमृगैः समन्तादुपजातसाध्वसैः। 2/9 कमल के समान सुहावनी चंचल आँखों के कारण सुंदर मुखवाले डरे हुए हरिणों से भरा हुआ। प्रभूतशालिप्रसवैश्चितान मृगाङ्गना यूथ विभूषितानि। 4/8 जिन खेतों में भरपूर धान लहलहा रहा है, हरिणियों के झुंड के झुंड चौकड़ियाँ भर रहे हैं। हरिण - [ह + इनन्] मृग, बारह सिंगा। अवेक्ष्यमाणा हरिणेक्षणाक्ष्यः प्रबोधयन्तीव मनोरथानि। 4/10 वे मृगनयनी स्त्रियाँ जब मार्ग को देखती हैं तो यह सोचती हैं कि जब हमारे पति आवेंगें, तब यों मिलेंगी, यों बातें करेंगी।
मृगेश्वर 1. केसरी - [ केसर + इनि] सिंह।
प्रवृद्ध तृष्णोपहता जलार्थिनो न दन्तिन: केसरिणोऽपि बिभ्यति। 1/15 जो हाथी धूप और प्यास से बेचैन होकर पानी की खोज में इधर-उधर भटक रहे हैं, वे इस समय सिंह से भी नहीं डर रहे हैं।
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