Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 375
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 840 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. बर्हिण [ बर्ह + इनच्] मोर । ससंभ्रमालिङ्गन चुम्बनाकुलं प्रवृत्तनृत्यं कुलमद्य बर्हिणाम् । 2/6 ये मोरों के झुंड, झटपट अपनी प्यारी मोरनियों को गले लगाते हुए और चूमते हुए आज नाच उठे हैं । कालिदास पर्याय कोश 3. मयूर [मी + ऊरन्] मोर । अवाङ्मुखो जिह्मगतिः श्वसन्मुहुः फणी मयूरस्य तले निषीदति । 1/13 अपना मुँह नीचे छिपाकर बार-बार फुफकारता हुआ साँप मोर की छाया में कुंडल मारे बैठा हुआ है। धुन्वन्ति पक्ष पवनैर्न नभो बलाकाः पश्यन्ति नोन्नतमुखा गगनं मयूराः । 3/12 न बगले ही अपने पँख हिला-हिलाकर आकाश को पंखा कर रहे हैं और न मोरों के झुंड ही मुँह ऊपर उठाकर आकाश की ओर देख रहे हैं। 4. शिखी - [ शिखा अस्त्यस्य इनि] मोर, मुर्गा । पतन्ति मूढाः शिखिनां प्रनृत्यतां कलाप चक्रेषु नवोत्पलाशया । 2 / 14 वे हड़बड़ी में भूल से, नाचते हुए मोरों के खुले पंखों को नए कमल समझकर उन्हीं पर टूट पड़ रहे हैं । प्रवृत्त नृत्यैः शिखिभिः समाकुलाः समुत्सुकत्वं जनयन्ति भूधराः । 2/16 जिन पहाड़ों पर मोर नाच रहे हैं, उन्हें देखकर प्रेमियों के मन में हलचल मच जाती है । 1. मीन - मछली । नद्यो घना मत्तगजा वनान्ताः प्रियाविहीनाः शिखिनः प्लवङ्गाः । 2/19 नदियाँ, बादल, मतवाले हाथी, जंगल, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ, मोर और बंदर | नृत्यप्रयोगरहिताञ्शिखिनो विहाय हंसानुपैति मदनो मधुर प्रगीतान्। 3 / 13 जिन मोरों ने नाचना छोड़ दिया है, उन्हें छोड़कर अब कामदेव उन हंसों के पास पहुँच गया है, जो बड़ी मीठी बोली में रुनझुन रुनझुन कर रहे हैं। मीन For Private And Personal Use Only

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