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कालिदास पर्याय कोश
रक्ताशोक विकल्पिताधर मधुर्मत्तद्विरेफस्वनः कुन्दापीडविशुद्ध दन्तनिकरः प्रोत्फुल्लपद्माननः। 6/36 अमृत भरे अधरों के समान लाल अशोक से, मतवाले भौंरों की गूंज से, दाँतों की चमकती हुई पाँतों जैसे उजले कुंद के हारों से, भलीभाँति खिले हुए कमल
के समान मुखों से। 2. मुख - [ खन् + अच्, डित् धातोः पूर्व मुट् च] मुँह, चेहरा।
सुवासितं हर्म्यतलं मनोहरं प्रियामुखोच्छ्वासविकम्पितं मधु। 1/3 सुंदर सुगंधित जल से धुला हुआ भवन का तल, प्यारी के मुँह की भाप से उफनाती हुई मदिरा। सितेषु हर्येषु निशासु योषितां सुखप्रसुप्तानि मुखानि चन्द्रमाः। 1/9 रात के समय उजले भवन में सुख से सोई हुई युवती का मुंह निहारने को उतावला रहने वाला चंद्रमा। तृणोत्करैरुद्गतकोमलाङ्कुरैश्चितानि नीलैर्हरिणीमुखक्षतैः। 2/8 हरिणियों के मुँह की कतरी हुई हरी-भरी घासों से छाए हुए। हंसैर्जिता सुललिता गतिरङ्गनानामम्भोरुहैर्विकसितै मुखचन्द्रकान्तिः। 3/17 हंसों ने सुंदरियों की मनभावनी चाल को, कमलिनियों ने उनके चंद्रमुख की चमक को हरा दिया है। अनुपममुखरागारात्रिमध्ये विनोदं शरदि तरुणकान्ताः सूचयन्ति प्रमोदान्। 3/24 शरद् में अनूठे प्रकार से मुँह रँगने वाली युवतियाँ सखियों से यह बता डालती हैं, कि रात में कैसे-कैसे आनंद लूट गया। दिवसकरमयूखैर्बोध्यमानं प्रभाते वरयुवतिमुखाभं पङ्कजंजृम्भतेऽद्य। 3/25 प्रातः काल जब सूर्य अपने करों से कमल को जगाता है तब वह कमल सुंदरी युवती के मुँह के समान खिल उठता है। गात्राणि कालीयकचर्चितानि सपत्रलेखानि मुखाम्बुजानि। 4/5 अपने शरीर पर चंदन मलती हैं, अपने कमल जैसे मुँह पर अनेक प्रकार के बेल-बूटे बनाती हैं।
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