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ऋतुसंहार
अभिमुखमभिवीक्ष्य क्षामदेहोऽपि मार्गे मदनशरनिघातैर्मोहमेति प्रवासी। 6/30 परदेश में पड़ा हुआ यात्री एक तो यों ही दुबला-पतला हुआ रहता है, तिस पर जब अपने सामने यह देखता है तो वह कामदेव के बाणों की चोट खाकर मूर्च्छित हो जाता है। चूतामोदसुगन्धिमन्दपवनः शृङ्गारदीक्षागुरुः कल्पान्तं मदनप्रियो दिशतु वः पुष्पागमो मङ्गलम्। 6/36 आम के बौरों की सुगंध में बसे हुए मंद-मंद पवन से यह श्रृंगार की शिक्षा देने वाला और काम का मित्र वसंत आप लोगों को सदा प्रसन्न रखे। मन्मथ - [मन् + क्विप्, मथ् + अच्, ष० त०] कामदेव। दिनान्तरम्योऽभ्युपशान्तमन्मथो निदाघकालोऽयमुपागतः प्रिये। 1/1 प्रिये! गरमी के दिन आ गए हैं, इन दिनों साँझ बड़ी लुभावनी होती है, और कामदेव तो एक-दम ठंडा पड़ जाता है। पदे पदे हंसरुतानुकारिभिर्जनस्य चित्तं क्रियते समन्मथम्। 1/5 पैरों में हंसों के समान रुनझुन करने वाले बिछुओं को देखकर लोगों का जी काम से मचल उठता है। स वल्लकीकाकलिगीतनिस्वनैर्विबोध्यते सुप्त इवाद्य मन्मथः। 1/8 लोग कामदेव को उसी प्रकार जगाया करते हैं, जैसे कोई स्त्री अपने सोए हुए प्रेमी को वीणा के साथ अपने मीठे गले से गीत गा-गाकर जगाया करती है। इषुभिरिव सुतीक्ष्णैर्मानसं मानिनीनां तुदति कुसुममासो मन्मथोद्दीपनाय। 6/29 अपने पैने बाणों से यह वसंत मानिनी स्त्रियों के मन इसलिये बींध रहा है जिससे उनमें काम जग जाए। गुरुतरकुचयुग्मं श्रोणिबिम्बं तथैव न भवति किमिदानी योषितां मन्मथाय। 6/33 स्त्रियों के बड़े-बड़े गोल-गोल स्तन वैसे ही बड़े-बड़े गोल-गोल नितंब क्या लोगों के मन में कामदेव को नहीं जगा रहे हैं।
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