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ऋतुसंहार
पटुतरदवदाहोच्छुष्क सस्य प्ररोहाः परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्क पर्णाः। 1/22 वहाँ जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपट से सब वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, अंधड़ में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। विकच नवकुसुम्भ स्वच्छसिन्दूरभासा प्रबलपवनवेगोद्भूत वेगेन तूर्णम्। 1/24 पूरे खिले हुए नये कुसुंभी के फूल के समान और स्वच्छ सिंदूर के समान लाल-लाल चमकने वाली, आँधी से और भी धधक उठने वाली। ज्वलति पवनवृद्धः पर्वतानां दरीषु स्फुटति पटुनिनादंशुष्क वंशस्थलीषु। 1/25 वायु से और भी भड़की हुई (अग्नि की लपट)पहाड की घाटियों में फैलती हुई, सूखे बाँसों में चटपट रही है। परिणदल शाखानुत्पतन् प्रांशुवृक्षान्भ्रमति पवनधूतः सर्वतोऽग्निर्वनान्ते। 1/26 पवन से भड़काई हुई आग उन ऊँचे वृक्षों पर उछलती हुई, वन में चारों ओर घूम रही है, जिनकी डालियों के पत्ते बहुत गर्मी पड़ने से पक-पककर झड़ते जा रहे हैं। कुवलयदलनीलैरुन्नतैस्तोयननैर्मदुपवनविधूतैर्मन्दमन्दंचलद्भिः । 2/23 कमल के पत्तों के समान साँवले, पानी के भार से झुक जाने के कारण बहुत थोड़ी ऊँचाई पर छाए और धीमे-धीमे पवन के सहारे चलने वाले। मुदितइव कदम्बैर्जातपुष्पैः समन्तात् पवनचलित शाखैः शाखिभिर्नृत्यतीव। 2/24 खिले हुए कदंब के फूल ऐसे लग रहे हैं, मानो जंगल मगन हो उठा हो। पवन से झूमती हुई शाखाओं को देखकर ऐसा लगता है, मानो पूरा जंगल नाच रहा हो। संलक्ष्यते पवनवेगचलैः पयोदैराजेव चामरशतैरुपवीज्यमानः। 3/4 पवन के सहारे इधर-उधर घूम रहे बादलों से भरा हुआ आकाश ऐसा लगने लगा है, मानो किसी राजा पर सैकड़ों चंवर डुलाए जा रहे हों।
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