________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
828
कालिदास पर्याय कोश
विपाण्डुरं कीटरजस्तृणान्वितं भुजंगवद्वक्रगति प्रसर्पितम्। 2/13 छोटे-छोटे कीड़े, धूल और घास को बहाता हुआ मटमैला बरसाती पानी साँप के
समान टेढ़ा-मेढ़ा घूमता हुआ। 3. भोगिन् - [भोग + इनि] फणदार, साँप।
न भोगिनं जन्ति समीपवर्तिनं कलापचक्रेषु निवेशिताननम्। 1/16 वे अपने पास कुंडल मारकर बैठे हुए साँपों को भी नहीं मारते वरन् अपना गला उनकी पूँछ की कुंडल में डाले चुप-चाप बैठे हुए हैं। उत्प्लुत्य भेकस्तृषितस्य भोगिनः फणातपत्रस्य तले निषीदति। 1/8 मेंढक बाहर निकल-निकलकर प्यासे साँपों के फन की छतरी के नीचे आ-आकर बैठ रहे हैं।
ग 1. अलि - [ अल् + इनि] भौंरा, बिच्छू।
मत्तालियूथविरुतं निशि सीधुपानं सर्वं रसायनमिदं कुसुमायुधस्य। 5/35 मतवाले भौंरो की गुंजार और रात में आसव पीना ये सब कामदेव को जगाए रखने वाले रसायन ही हैं। आम्री मञ्जुलमञ्जरी वरशरः सत्किंशुकं यद्धना यस्यालिकुलं कलङ्करहितं छत्रं सितांशुः सितम्। 6/38 जिसके आम के बौर ही बाण हैं, टेसू ही धनुष हैं, भौंरों की पाँत ही डोरी हैं,
उजला चंद्रमा ही निष्कलंक छत्र है। 2. द्विरेफ - [द्वि + रेफः] भौंरा।
मत्तद्विरेफपरिपीतमधुप्रसेकश्चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः। 3/6 जिसमें से बहते हुए मधु की धार को मस्त भौरे धीरे-धीरे चूस रहे हैं, ऐसा कोविदार का वृक्ष किसका हृदय टुकड़े-टुकड़े नहीं कर देता। प्रफुल्लचूताङ्कुरतीक्ष्णसायको द्विरेफमालाविलसद्धनुर्गुणः। 6/1 फूले हुए आम की मंजरियों के पैने बाण लेकर और अपने धनुष पर भौंरो की पांतों की डोरी चढ़ाकर।
For Private And Personal Use Only