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ऋतुसंहार
बहुगुणरमणीयो योषितां चित्तहारी परिणतबहुशालिव्याकुल ग्रामसीमा। 4/19 जो अपने अनेक गुणों से मन को मुग्ध करने वाली, स्त्रियों के चित्त को लुभाने वाली है, जिसमें गाँव के आस-पास पके हुए धान के खेत लहलहाते हैं। न वायवः सान्द्रतुषारशीतला जनस्य चित्तं रमयन्ति सांप्रतम्। 5/3 इन दिनों घनी ओस से ठंडा बना हुआ वायु ही लोगों के मन को भाता है। कृतापराधान्बहुशोऽभितर्जितान्सवेपथून्साध्वसलुप्तचेतसः। 5/6 मदमाती स्त्रियों ने अपने जिन पतियों को अपराध करने पर डाँट-फटकारा था, वे जब कांपते हुए और घबराए मन से आते हैं। प्रियजनरहितानां चित्तसंताप हेतुः शिशिरसमय एष श्रेयसे वोऽस्तु नित्यम्। 5/16 जिस में प्यारों के बिना अकेले दिन काटने वाले लोग मन मसोसकर रह जाते हैं, वह शिशिर ऋतु आप लोगों का भला करे। दृष्ट्वा प्रिये सहृदयस्य भवेन्न कस्य कंदर्पबाणपतनव्यथितं हिचेतः। 6/20 (अनोखी शोभा) देखकर किस रसिक का मन कामदेव के बाण से घायल नहीं हो जाता। चित्तं मुनेरपि हरन्ति निवृत्तरागं प्रागेव रागमलिनानि मनांसि यूनाम्। 6/25 जब मोह-माया से दूर रहने वाले मुनियों तक का मन हर लेते हैं, फिर नवयुवकों के प्रेमी हृदय की तो बात ही क्या? कान्तावियोगपरिखेदितचित्तवृत्तिदृष्ट्वाऽध्वगः कुसुमितान्सहकारवृक्षान्। 6/28 अपनी स्त्रियों से दूर रहने के कारण जिसका जी (मन) बेचैन हो रहा है, वे
यात्री जब मंजरियों से लदे हुए आम के पेड़ों को देखते हैं। 2. मन - [मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन्] मन, हृदय, समझ, प्रज्ञा।
नितम्बदेशाश्च सहेममेखलाः प्रकुर्वते कस्य मनो न सोत्सुकम्। 1/6 सुनहरी करधनी से बँधे हुए नितंब देखकर भला किसका मन नहीं ललच उठेगा।
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