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कालिदास पर्याय कोश
वनान्तरे तोयमिति प्रधाविता निरीक्ष्य भिन्नाञ्जनसंनिभं नभः। 1/11 वे धोखे में उन जंगलों की ओर दौड़े जा रहे हैं, जहाँ के आँजन के समान दिखने वाले आकाश को ही वे पानी समझ बैठे हैं। भिन्नाञ्जनप्रचयकान्ति नभो मनोजें बन्धूकपुष्परजसाऽरुणिता च भूमिः। 3/5 घुटे हुए आंजन की पिंडी जैसा नीला सुंदर आकाश, दुपहरिया के फूलों से लाल बनी हुई धरती और। धुन्वन्ति पक्षपवनैर्न नभो बलाकाः पश्यन्ति नोन्नतमुखा गगनं मयूराः। 3/12 न बगले ही अपने पंख हिला-हिलाकर आकाश को पंखा कर रहे हैं और न
मोरों के झुंड ही मुँह उठाकर आकाश की ओर देख रहे हैं। 3. व्योम - [ व्ये + मनिन्, पृषो०] आकाश, अंतरिक्ष।
क्वचित्सगर्भप्रमदास्तनप्रभैः समाचितं व्योम घनैः समन्ततः। 2/2 कहीं गर्भिणी स्त्री के समान पीले बादल आकाश में इधर-उधर छाए हुए हैं। व्योम क्वचिद्रजतशङ्खमृणालगौरैस्त्यक्ताम्बुभिर्लधुतया शतशः प्रयातैः। 3/4 चाँदी, शंख और कमल के समान उजले सहस्रों बादल पानी बरसने से हल्के होकर आकाश में घूम रहे हैं, उनसे आकाश कहीं-कहीं ऐसा लगने लगा है। श्रियमतिशयरूपां व्योम तोयाशयानां वहति विगतमेघं चन्द्रतारावकीर्णम्। 3/21 खिले हुए चंद्रमा और छिटके हुए तारों से भरा हुआ खुला आकाश उन तालों के समान दिखाई पड़ रहा है। विगतकलुषमम्भः श्यानपङ्का धरित्री विमलकिरण चन्द्र व्योम ताराविचित्रम्। 3/22 पानी का गंदलापन दूर हो गया है, धरती पर का सारा कीचड़ सूख गया है और आकाश में स्वच्छ किरणों वाला चंद्रमा और तारे निकल आए हैं।
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