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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 802 कालिदास पर्याय कोश वनान्तरे तोयमिति प्रधाविता निरीक्ष्य भिन्नाञ्जनसंनिभं नभः। 1/11 वे धोखे में उन जंगलों की ओर दौड़े जा रहे हैं, जहाँ के आँजन के समान दिखने वाले आकाश को ही वे पानी समझ बैठे हैं। भिन्नाञ्जनप्रचयकान्ति नभो मनोजें बन्धूकपुष्परजसाऽरुणिता च भूमिः। 3/5 घुटे हुए आंजन की पिंडी जैसा नीला सुंदर आकाश, दुपहरिया के फूलों से लाल बनी हुई धरती और। धुन्वन्ति पक्षपवनैर्न नभो बलाकाः पश्यन्ति नोन्नतमुखा गगनं मयूराः। 3/12 न बगले ही अपने पंख हिला-हिलाकर आकाश को पंखा कर रहे हैं और न मोरों के झुंड ही मुँह उठाकर आकाश की ओर देख रहे हैं। 3. व्योम - [ व्ये + मनिन्, पृषो०] आकाश, अंतरिक्ष। क्वचित्सगर्भप्रमदास्तनप्रभैः समाचितं व्योम घनैः समन्ततः। 2/2 कहीं गर्भिणी स्त्री के समान पीले बादल आकाश में इधर-उधर छाए हुए हैं। व्योम क्वचिद्रजतशङ्खमृणालगौरैस्त्यक्ताम्बुभिर्लधुतया शतशः प्रयातैः। 3/4 चाँदी, शंख और कमल के समान उजले सहस्रों बादल पानी बरसने से हल्के होकर आकाश में घूम रहे हैं, उनसे आकाश कहीं-कहीं ऐसा लगने लगा है। श्रियमतिशयरूपां व्योम तोयाशयानां वहति विगतमेघं चन्द्रतारावकीर्णम्। 3/21 खिले हुए चंद्रमा और छिटके हुए तारों से भरा हुआ खुला आकाश उन तालों के समान दिखाई पड़ रहा है। विगतकलुषमम्भः श्यानपङ्का धरित्री विमलकिरण चन्द्र व्योम ताराविचित्रम्। 3/22 पानी का गंदलापन दूर हो गया है, धरती पर का सारा कीचड़ सूख गया है और आकाश में स्वच्छ किरणों वाला चंद्रमा और तारे निकल आए हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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