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ऋतुसंहार
823 भारी नितंबों वाली, गहरी नाभि वाली, लचकदार कमरवाली और मनभावनी सुंदरता वाली स्त्री प्रातः काल पलँग छोड़कर उठ रही है। कान्तामुखद्युतिजुषाम चिरोद्गतानां शोभा परां कुरबक दुम मञ्जरीणाम्। 6/20 अभी खिले हुए और स्त्रियों के मुख के समान सुंदर लगने वाले कुरबक के
फूलों की अनोखी शोभा देखकर। 8. श्री - [श्रि + क्विप्, नि०] सौंदर्य, कांति, महिमा।
मुक्त्वा कदम्बकुटजार्जुनसर्जनीपासप्तच्छदानुपगताकुसमोद्गमश्रीः। 3/13 फूलों की सुंदरता भी कदंब, कुटज, अर्जुन, सर्ज और अशोक के वृक्षों को छोड़कर छतिवन के पेड़ पर जा बसी है। बन्धूककान्तिमधरेषु मनोहरेषु क्वापि प्रयाति सुभगा शरदागमश्रीः। 3/27 शरद की सुंदर शोभा, कहीं बंधूक के फूलों की लाली छोड़कर उनके निचले होरों में जा चढ़ी है।
प्ररोह 1. प्ररोह - [ प्र + रुह् + घञ्] टहनी, शाखा, कोंपल।
पटुतरदवदाहोच्छुष्क सस्य प्ररोहाः परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्कपर्णाः। 1/22 जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपट से वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं,
अंधड़ में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। 2. लता - [लत् + अच् + यप्] बेल, शाखा।
श्यामालताः कुसुमभारनतप्रवालाः स्त्रीणां हरन्ति धृतभूषण बाहुकान्तिम्। 3/18 जिन हरी बेलों की टहनियाँ फूलों के बोझ से झुक गई हैं, उनकी सुन्दरता ने
स्त्रियों की गहनों से सजी हुई बाहों की सुन्दरता छीन ली है। 3. शाखा - [ शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + यप्] डाली, शाख।
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