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ऋतुसंहार
जूही की नई-नई कलियों तथा मालती और मौलसिरी के फूलों की माला बालों में सजाने के लिए गूंथ रहा हो। भिन्नाञ्जनप्रचयकान्ति नभो मनोज्ञं बन्धूकपुष्परजसाऽरुणिता च भूमिः। 3/5 घुटे हुए आँजन की पिंडी जैसा नीला सुंदर आकाश, दुपहरिया के फूलों से लाल बनी हुई धरती। मन्दानिलाकुलितचारुतराग्रशाखः पुष्पोद्गमप्रचयकोमल पल्लवाग्रः। 3/6 जिसकी शाखाओं की सुंदर फुनगियों को धीमा-धीमा पवन झुला रहा है, जिस पर बहुत से फूल खिले हुए हैं, जिसकी पत्तियाँ बड़ी कोमल हैं। पुष्पासवामोदसुगन्धिवक्त्रो निःश्वासवातैः सुरभीकृताङ्गः। 4/12 फूलों के गंध की भीनी और मीठी सुगंधवाले मुँह से मुँह लगाकर और साँसों से सुगंधित अंग से अंग मिलाकर। गृहीतताम्बूलविलेपनत्रजः पुष्पासवामोदितवक्त्रपङ्कजा। 5/5 फूलों के आसव पीने से जिनका कमल जैसा मुंह सुगंधित हो गया है, वे स्त्रियाँ पान खाकर और फुलेल लगाकर।। पुष्पं च फुल्लं नवमल्लिकायाः प्रयान्ति कान्तिं प्रमदाजनानाम्। 6/6 स्त्रियों की लटों में अशोक के फूल और नवमल्लिका की खिली हुई कलियाँ बड़ी सुहावनी लगने लगी हैं। रुचिरकनक कान्तीन्मुञ्चतः पुष्पराशीन्मृदुपवनविधूतान्पुष्पिताँश्चूतवृक्षान्। 6/30 जब वह मंद-मंद बहने वाले पवन के झोंके से हिलते हुए और सुंदर सुनहले बौर गिराने वाले, बौरे हुए आम के वृक्षों को देखता है। परभृतकलगीतैह्रादिभिः सद्वचांसि स्मितदशनमयूखान्कुन्दपुष्पप्रभाभिः। 6/31 जी हुलसाने वाले कोकिल के गीत सुना-सुनाकर सुंदरियों की रस भरी बातों की खिल्ली उड़ा रहा है। अपने कुंद के फूलों की चमक दिखाकर स्त्रियों की मुस्कान पर चमक उठने वाले दाँतों की दमक की हँसी उड़ा रहा है।
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