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कालिदास पर्याय कोश
बहुत प्यास के मारे इसका सब साहस ठंडा पड़ गया है, अपना पूरा मुँह खोलकर यह बार-बार हाँफ रहा है।
विषाग्निसूर्यातपतापितः फणी न हन्ति मण्डूककुलं तृषाकुलः। 1/20 धूप की लपटों और अपने विष की झार से जलने के कारण प्यासा साँप मेढकों को नहीं मार रहा है।
तृषाकुलं निः सृतमद्रिगह्वरादवेक्षमाणं महिषीकुलं जलम् । 1/21 प्यास के मारे ऊपर मुँह उठाए हुए भैंसों का समूह पहाड़ की गुफा से निकल-निकल कर जल की ओर चला जा रहा है।
2. तृष्णा - [ तृष + न + टाप् किच्च ] प्यास, इच्छा, लालसा, लालच । प्रवृद्धतृष्णोपहता जलार्थिनो न दन्तिनः केसरिणोऽपि बिभ्यति। 1/15 धूप और प्यास से बेचैन होकर, पानी की खोज में इधर-उधर घूम रहे हाथी सिंह से भी नहीं डर रहे हैं ।
दग्ध
दग्ध - [ दह् + क्त्] जला हुआ, आग में भस्म हुआ ।
न शक्यते द्रष्टुमपि प्रवासिभिः प्रियावियोगानलदग्धमानसैः । 1/10
परदेस में गये हुए जिन प्रेमियों का हृदय अपनी प्रेमिकाओं के बिछोह की जलन से झुलस गया है, उनसे यह देखा नहीं जाता।
तटविटपलताग्रालिङ्गनव्याकुलेन
दिशि दिशि परिदग्धा भूमयः पावकेन । 1/24
तीर पर खड़े हुए वृक्षों और लताओं की फुनगियों को चूमती जाने वाली आग से जहाँ-तहाँ धरती जल गई है।
2. दध् - पकड़ना, धारण करना, जलाना ।
दिनकर परितापक्षीणतोयाः समन्ताद्
विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः । 1/22
आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गर्मी से चारों ओर का जल सूख गया है और टहनियाँ झुलस गई हैं।
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