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ऋतुसंहार
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नितंब
1. जघन - [ हन् + अच्, द्वित्वम् ] कूल्हा, चूतड़, पुट्ठा । पृथुजघनभरार्ताः किंचिदानम्रमध्याः
स्तन परिखेदान्मन्दमन्द व्रजन्त्यः । 5/14
अपने मोटे नितंबों के बोझ से दुखी, अपने स्तनों के बोझ से झुकी हुई कमर वाली और थकने के कारण बहुत धीरे-धीरे चलने वाली ।
प्रयन्त्यनङ्गातुरमानसानां नितम्बिनीनां जघनेषु काञ्चयः । 6/7
अपने प्रेमी के संभोग करने को उतावली नारियों ने अपने नितंबों पर करधनी बाँध ली है।
मध्येषु निम्नो जघनेषु पीनः स्त्रीणामनङ्गो बहुधा स्थितोऽद्य। 6/12 कामदेव भी स्त्रियों की कमर में गहरापन बनकर और नितंबों में मोटापा बनकर आ बैठता है।
कूल्हा ।
2. नितंब - [ निभृतं तभ्यते कामुकैः, तमु कांक्षायाम् ] चूतड़, श्रोणि प्रदेश, नितम्बबिम्बैः सदुकूलमेखलैः स्तनैः सहाराभरणैः सचन्दनैः । 1/4 रेशमी वस्त्र और करधनी पड़े हुए नितंबों पर तथा चंदन पुते और हार तथा दूसरे गहने पड़े हुए स्तनों से लिपटाती हैं।
नितम्बदेशाश्च सहेममेखलाः प्रकुर्वते कस्य मनो न सोत्सुकम् । 1/6 सुनहरी करधनी से बँधे हुए नितंब देखकर भला किसका मन नहीं ललच उठेगा ।
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नद्यो विशालपुलिनान्तनितम्बबिम्बा
मन्दं प्रयान्ति समदाः प्रमदा इवाद्य । 3/3
नदियाँ भी उसी प्रकार धीरे-धीरे बही जा रही हैं, जैसे बड़े-बड़े नितंबों वाली कमिनियाँ चली जा रही हों, ऊँचे-ऊँचे रेतीले टीले ही उनके गोल नितंब हैं । नितम्बबिम्बेषु नवं दुकूलं तन्वंशुकं पीनपयोधरेषु । 4 /3
न अपने गोल-गोल नितंबों पर नये रेशमी वस्त्र ही लपेटती हैं, और न अपने मोटे-मोटे स्तनों पर महीन कपड़े ही बाँधती हैं।
काञ्चीगुणैः काञ्चनरत्नचित्रैनों भूषयन्ति प्रमदा नितम्बान्। 4/4