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कालिदास पर्याय कोश
सुतन्त्रिगीतं मदनस्य दीपनं शुचौ निशीथेऽनुभवन्ति कामिनः। 1/3 प्रेमियों को भी इन दिनों मन बहलाने के लिए ऐसी-ऐसी काम को उभारने
वाली वस्तुएँ चाहिए जैसे रात्रि में सुंदर वीणा के साथ गाए हुए गीत। 5. रजनी - [रज्यतेऽत्र, रञ्ज + कनि वा ङीप्] रात।
काशैर्मही शिशिरदीधितिना रजन्यो हंसैर्जलानि सरितां कुमुदैः सरांसि। 3/2 काँस की झाड़ियों ने धरती को, चंद्रमा ने रातों को, हंसों ने नदियों के जल को, कमलों ने तालाबों को। ज्योत्स्नादुकूलममलं रजनी दधाना वृद्धिं प्रयात्यनुदिनं प्रमदेव बाला। 3/7 आजकल की रात चाँदनी की उजली साड़ी पहने हुए अलबेली तरुणी के समान दिन-दिन बढ़ती चली जा रही है। रात्रि - [राति सुखं भयं वा रा + त्रिप् वा ङीप्] रात। अनुपममुखरागा रात्रिमध्ये विनोदं शरदि तरुणकान्ताः सूचयन्ति प्रमोदान्। 3/24 अनूठे प्रकार से मुँह रँगने वाली और शरद् में संभोग का रस लेने वाली युवतियाँ बता डालती हैं, कि रात में कैसे-कैसे आनंद लूट गया। अन्या प्रकामसुरतश्रमखिन्नदेहो रात्रिप्रजागरविपाटलनेत्रपद्मा। 4/15 अत्यंत संभोग से थक जाने के कारण एक दूसरी स्त्री की कमल जैसी आँखें रात भर जागने से लाल हो गई हैं। विपाण्डुतारागण चारुभूषणा जनस्य सेव्या न भवन्ति रात्रयः। 5/4
पीले-पीले तारों वाली रातों में कोई भी बाहर नहीं निकलता। 7. शर्वरी - [ शृ + वनिष्, ङीप, वनोर च] रात।
अभीक्ष्णमुच्चैर्ध्वनता पयोमुचा घनान्धकारीकृत शर्वरीष्वपि। 2/10 गरजते हुए बादलों से घिरी हुई इस घनी अँधेरी रात में भी।
नेत्र 1. अक्षि - [अश्नुते विषयान् - अश् + क्सि] आँख।
विकच कमलवक्त्रा फुल्लनीलोत्पलाक्षी विकसितनवकाश श्वेतवासो वसाना। 3/28
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