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ऋतुसंहार
कहीं तो अत्यंत नीले कमल की पंखड़ी जैसे नीले और कहीं घुटे हुए आँजन की ढेरी के समान काले-काले ।
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विपत्रपुष्पां नलिनीं समुत्सुका विहाय भृङ्गाः श्रुतिहारिनिस्वनाः । 2 / 14 कानों को सुहाने वाली मीठी तानें लेकर गूँजते हुए भौरे, उस कमल को छोड़-छोड़कर चले जा रहे हैं, जिनके पत्ते और फूल झड़ गए हैं। उत्कण्ठयत्यतितरां पवनः प्रभाते पत्रान्तलग्नतुहिनाम्बु विधूयमानः । 3 / 15 प्रात: काल पत्तों पर पड़ी हुई ओस की बूंदे गिराता हुआ, जो पवन धीमे-धीमे बह रहा है, वह किसे मस्त नहीं बना देता ।
गात्राणि कालीयकचर्चितानि सपत्रलेखानि मुखाम्बुजानि । 4/5 अपने शरीर पर चंदन मलती हैं, अपने कमल जैसे मुँह पर अनेक प्रकार के बेल-बूटे बनाती हैं।
सपत्रलेखेषु विलासिनीनां वक्त्रेषु हेमाम्बुरुहोपमेषु । 6 / 8
सुनहरे कमल के समान सुहावने और बेल-बूटे चीते हुए स्त्रियों के मुखों पर । 4. पर्ण [ पर्ण + अच्] पत्ता ।
पटुतरदवदाहोच्छुष्कसस्य प्ररोहाः
परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्क पर्णाः । 1 / 22
जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपटों से सब वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं।
श्वसिति विहगवर्गः शीर्णपर्णदुमस्थः
कपिकुलमुपयाति क्लान्तमद्रेर्निकुञ्जम्। 1/23
जिन वृक्षों के पत्ते झड़ गए हैं, उन पर बैठी हुई सभी चिड़ियाँ हाँफ रही हैं, उदास बंदरों के झुंड पहाड़ की गुफाओं में घुसे जा रहे हैं ।
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5. पल्लव - [ पल् + क्विप् पल् लू + अप्लव, पल् चासौ लवश्च कर्म० स०] अंकुर, कोंपल, टहनी ।
वनानि वैन्ध्यानि हरन्ति मानसं विभूषितान्यद्गतपल्लवैर्दुमैः । 2/8
नई कोंपलों वाले वृक्षों से छाए हुए विंध्याचल के जंगल किसका मन नहीं लुभा लेते।