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ऋतुसंहार
1.
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दिनान्त
1. दिनान्त - [ द्युति तमः, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः + अन्तः] सायंकाल, सूर्यास्त
का समय ।
2.
प्रा० ब०] संध्याकाल, रात्रि का आरंभ।
2. प्रदोष [ प्रकृष्टः दोषो यस्य अनङ्गसंदीपनमाशु कुर्वते यथा प्रदोषाः शशि चारुभूषणाः । 1/12
चमकते हुए चंद्रमा वाली साँझ के समान जो सुंदरियाँ चंद्रमा के समान उजले आभूषणों से सजी हैं, वे कामदेव, को जगा देती हैं।
श्रुत्वा ध्वनिं जलमुचां त्वरितं प्रदोषे
शय्यागृहं गुरुगृहात्प्रविशन्ति नार्यः । 2 / 22
स्त्रियाँ बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर झट अपने घर के बड़े-बूढ़ों के पास से उठकर सही साँझ को ही अपने शयन घर में घुस जाती हैं।
दिनान्तरम्योऽभ्युपशान्तमन्मथो निदाघकालोऽयमुपागतः प्रिये । 1/1 प्रिये! गरमी के दिन आ गए हैं। इन दिनों साँझ बड़ी लुभावनी होती है और कामदेव तो एक दम ठंडा पड़ गया है।
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सुखाः प्रदोषा दिवसाश्च रम्याः सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते | 6/2
वसंत के आते ही साँझें सुहावनी हो चली हैं और दिन लुभावने हो गए हैं। सुंदर वसंत में सबकुछ सुहावना लगने लगता है।
रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः
नभ [ नभ + अच्] आकाश,
पुंस्कोकिलस्यविरुतं पवनः सुगन्धिः 16/35
लुभावनी साँझें, छिटकी चाँदनी, कोयल की कूक और सुगंधित पवन ।
नभ
गगन [ गच्छन्त्यस्मिन् - गम् + ल्युट् ग आदेशः ] आकाश, अंतरिक्ष । धुन्वन्ति पक्षपवनैर्न नभो बलाकाः पश्यन्ति नोन्नतमुखा गगनं मयूराः । 3/12 न बगुले ही अपने पंख हिला-हिलाकर आकाश को पंखा कर रहे हैं और न मोरों के झुंड ही मुँह उठाकर आकाश की ओर देख रहे हैं।
अंतरिक्ष ।
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