SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 800 www. kobatirth.org 1. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश बहुत प्यास के मारे इसका सब साहस ठंडा पड़ गया है, अपना पूरा मुँह खोलकर यह बार-बार हाँफ रहा है। विषाग्निसूर्यातपतापितः फणी न हन्ति मण्डूककुलं तृषाकुलः। 1/20 धूप की लपटों और अपने विष की झार से जलने के कारण प्यासा साँप मेढकों को नहीं मार रहा है। तृषाकुलं निः सृतमद्रिगह्वरादवेक्षमाणं महिषीकुलं जलम् । 1/21 प्यास के मारे ऊपर मुँह उठाए हुए भैंसों का समूह पहाड़ की गुफा से निकल-निकल कर जल की ओर चला जा रहा है। 2. तृष्णा - [ तृष + न + टाप् किच्च ] प्यास, इच्छा, लालसा, लालच । प्रवृद्धतृष्णोपहता जलार्थिनो न दन्तिनः केसरिणोऽपि बिभ्यति। 1/15 धूप और प्यास से बेचैन होकर, पानी की खोज में इधर-उधर घूम रहे हाथी सिंह से भी नहीं डर रहे हैं । दग्ध दग्ध - [ दह् + क्त्] जला हुआ, आग में भस्म हुआ । न शक्यते द्रष्टुमपि प्रवासिभिः प्रियावियोगानलदग्धमानसैः । 1/10 परदेस में गये हुए जिन प्रेमियों का हृदय अपनी प्रेमिकाओं के बिछोह की जलन से झुलस गया है, उनसे यह देखा नहीं जाता। तटविटपलताग्रालिङ्गनव्याकुलेन दिशि दिशि परिदग्धा भूमयः पावकेन । 1/24 तीर पर खड़े हुए वृक्षों और लताओं की फुनगियों को चूमती जाने वाली आग से जहाँ-तहाँ धरती जल गई है। 2. दध् - पकड़ना, धारण करना, जलाना । दिनकर परितापक्षीणतोयाः समन्ताद् विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः । 1/22 आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गर्मी से चारों ओर का जल सूख गया है और टहनियाँ झुलस गई हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy