Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 794 1. www. kobatirth.org कालिदास पर्याय कोश सती स्त्रियों के लाज और मर्यादा भरे हृदय को भी थोड़ी देर के लिए अधीर कर दिया है। वायुर्विवाति हृदयानि हरन्नराणां नीहारपातविगमात्सुभगोवसन्ते । 6/24 वसंत में पाला तो पड़ता नहीं इसलिए सुंदर वसंती पवन लोगों का मन हरता हुआ बह रहा है। मध मधुर कोकिल भृङ्ग नादैर्नार्यो हरन्ति हृदयं प्रसभं नराणाम् । 6/26 चैत में जब कोयल कूकने लगती है, भौरे गूँजने लगते हैं, तब स्त्रियाँ बलपूर्वक लोगों का मन अपनी ओर खींच लेती हैं। आकम्पितानि हृदयानि मनस्विनीनां आम्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वातैः प्रफुल्लसहकारकृताधिवासैः । 6/34 बौरे हुए आम के पेड़ों में बसे हुए पवन से मनस्विनी स्त्रियों के मन भी डिग जाते हैं। - चूत [ अम् + रन्, दीर्घः] आम का वृक्ष, आम का फल । आम्रीमञ्जुलमञ्जरी वरशरः सत्किंशुकं यद्धनु यस्यालिकुलं कलङ्करहितं सितांशुः सितम् । 6 / 38 जिसके आमके बौर की बाण हैं, टेसू ही धनुष हैं, भौंरों की पाँतें ही डोरी हैं, उजला चंद्रमा ही निष्कलंक छत्र है । 2. चूत [ चूष् + क्त पृषो०] आम का पेड़ । प्रफुल्लचूताङ्कुरतीक्ष्णसायको द्विरेफमालाविलसद्धनुर्गुणः । 6 / 1 फूले हुए आम की मंजरियों के पैने बाण लेकर और अपने धनुष पर भौंरों की पाँतों की डोरी चढ़ाकर । चूतदुमाणां कुसुमान्वितानां ददाति सौभाग्यमयं वसन्तः । 6/4 वसंत के आने से मंजरी से लदी आम की डालें और भी सुहावनी लगने लगी हैं। पुंस्कोकिलश्चूतरसासवेन मत्तः प्रियां चुम्बति रागहृष्टः । 6/16 यह नर कोयल आम की मंजरियों के रस में मद-मस्त होकर अपनी प्यारी को बड़े प्रेम से प्रसन्न होकर चूम रहा है। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441