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ऋतुसंहार
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बलाहकाश्चाशनिशब्दमर्दला : सुरेन्द्रचापं दधतंस्तडिद्गुणम् । 2/4
मृदंग के समान गड़गड़ाते हुए, बिजली की डोरी वाला इंद्र धनुष चढ़ाए हुए ये बादल ।
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अपहृतमिव चेतस्तोयदैः सेन्द्रचापैः
पथिकजनवधूनां तद्द्द्वियोगाकुलानाम्। 2/23
हैं।
बादलों में इंद्रधनुष निकल आया है, उन्होंने परदेश में गए हुए लोगों की उन स्त्रियों की सब सुध-बुध हर ली है, जो उनके बिछोह में व्याकुल 2. धनु [ धन् + उ ] धनुष ।
तडिल्लताशक्रधनुर्विभूषिताः पयोधरास्तोयभरावलम्बिनः । 2/20
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इंद्रधनुष और बिजली के चमकते हुए पतले धागों से सजी हुई और पानी के भार से झुकी हुई काली-काली घटाएँ ।
प्रफुल्लचूताङ्कुरतीक्ष्णसायको द्विरेफमालाविलसद्धनुर्गुणः । 6/1 फूले हुए आम की मंजरियों के पैने बाण लेकर और अपने धनुष पर भौंरों की पाँतों की डोरी चढ़ाकर ।
आम्री मञ्जुल मञ्जरी वरशरः सत्किंशुकं यद्धनुर्ज्या
यस्यालिकुलं कलङ्करहितं छत्रं सितांशुः सितम् । 6 / 38
जिसके आम के बौर ही बाण हैं, टेसू ही धनुष हैं, और भौंरो की पाँतें ही डोरी हैं, उजला चंद्रमा ही निष्कलंक छत्र हैं।
चित्त
1. चित्त [चित् + क्त] मन, हृदय, तर्क, बुद्धि ।
पदे पदे हंसरुतानुकारिभिर्जनस्य चित्तं क्रियते समन्मथम् । 1/5
कदम-कदम उठाने पर जो हंसों के समान रुनझुन करते बजा करते हैं, उन्हें देखकर लोगों का जी मचल उठता है ।
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सुतीक्ष्णधारापतनोग्रसायकैस्स्तुदन्ति चेतः प्रसभं प्रवासिनाम्। 2/4 अपनी तीखी धारों के पैने बाण बरसाकर परदेश में पहुँचे हुए लोगों का मन कसमसा रहे हैं।