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कालिदास पर्याय कोश
समाचिता सैकतिनी वनस्थली समुत्सुकत्वं प्रकरोति चेतसः । 2/9 रेतीला जंगल हृदय को बरबस खींचे लिए जा रहा है।
पयोधरैर्भीमगभीरनिस्वनैस्तडिद्भिरुद्धेजितचेतसो भृशम्। 2/11 बादलों की घोर कड़क सुनकर और बिजली की तड़पन से हृदय काँप उठने से I स्त्रियश्च काञ्चीमणिकुण्डलोज्ज्वला हरन्ति चेतो युगपत्प्रवासिनाम्। 2/20 और दूसरी ओर करधनी तथा रत्न जड़े कुंडलों से सजी हुई स्त्रियाँ, ये दोनों ही परदेश में बैठे हुए लोगों का मन हर लेते हैं।
बहुगुणरमणीयः कामिनीचित्तहारी
तरुविटपलतानां बान्धवो निर्विकारः । 2/29
बहुत से सुंदर गुणों से सुहावनी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी ।
मत्तद्विरेफपरिपीतमधुप्रसेकश्चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः । 3/6 जिसमें से बहते हुए मधु की धार को मस्त भरे धीरे-धीरे चूम रहे हैं, ऐसा कोविदार वृक्ष किसका हृदय टुकड़े-टुकड़े नहीं कर देता ।
अधररुचिरशोभां बन्धुजीवे प्रियाणां
पथिकजन इदानीं रोदति भ्रान्तचित्तः । 3 /26
जब परदेश में गए हुए लोग बंधुजीव के फूलों में अपनी प्रियतमा के निचले ओठों की चमकती हुई सुंदरता की चमक पाते हैं, तब वे भ्रांतचित्त होकर (सुध-बुध भूलकर) रोने लगते हैं।
कुमुदरुचिरकान्तिः कामिनीवोन्मदेयं
प्रतिदिशतु शरद्वश्चेतसः प्रीतिमग्रयाम् । 3 / 28
सुंदर कोंई के शरीरवाली जो कामिनी के समान मस्त शरद् ऋतु आई है, वह आप लोगों के मन में नई-नई उमंगें भरे ।
मनोहर क्रौञ्चनिनादितानि सीमान्तराण्युत्सुकयन्ति चेतः । 4 / 8
जिन में सारस बोल रहे हैं, उन्हें देखकर मन हाथ से निकल जाता है । प्रसन्नतोयानि सुशीतलानि सरांसि चेतांसि हरन्ति पुंसाम् । 4 / 9 जिन तालों में ठंडा निर्मल जल भरा है, उन्हें देखकर लोगों का जी (मन) खिल उठता है ।
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