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ऋतुसंहार
779 कोकिल 1. कोकिल - [ कुक् + इलच्] कोयल।
पुँस्कोकिलश्चूतरसासवेन मत्तः प्रियां चुम्बतिरागहष्टः। 6/16 यह नर कोयल आम की मंजरियों के रस में मदमस्त होकर अपनी प्यारी को बड़े प्रेम से प्रसन्न होकर चूम रहा है। यत्कोकिलः पुनरयं मधुरैर्वचोभियूंना मनः सुवदनानिहितं निहन्ति। 6/22 कोयल भी अपनी मीठी कूक सुना-सुना कर अपनी प्यारियों के मुखड़ों पर रीझे हुए प्रेमियों के हृदय को टूक-टूक कर रही है। पँस्कोकिलैः कलवचोभिरुपात्तहर्षेः कूजद्भिन्मदकलानि वचांसि भृङ्गैः। 6/23 मीठे स्वर में कूकने वाले नर कोयलों ने और मस्ती से गूंजते हुए भौंरों ने। समदमधुकराणां कोकिलानां नादैः कुसुमित सहकारैः कर्णिकारैश्च रम्यः। 6/29 कोयल और मदमाते भौरों के स्वरों से गूंजते हुए बोरै हुए आम के पेड़ों से भरा हुआ और मनोहर कनैर के फूलों वाले। रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः पुँस्कोकिलस्य विरुतं पवनः सुगन्धिः। 6/35 लुभावनी साँझें, छिटकी हुई चाँदनी, कोयल की कूक, सुगंधित पवन। मलय पवनविद्धः कोकिलालाप रम्यः सुरभिमधुनिषेकाल्लब्धगन्ध प्रबन्धः। 6/37 मलय के वायु वाला, कोकिल की कूक से जी लुभाने वाला, सदा सुगंधित
मधु बरसाने वाला। 2. परभृत - [ पृ० + अप्, कर्तरि अच् वा + त:] कोयल।
आकम्प्यन्कुसुमिताः सहकारशाखा विस्तारयन्परभृतस्य वचांसि दिक्षु। 6/24 आजकल मंजरियों से लदी आम की डालों को हिलाने वाला और कोयल के संदेशों को चारों ओर फैलाने वाला पवन।
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