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मेघदूतम्
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6. सततगति - [ सम् + तन् + क्त, समः अन्त्यलोपः] वायु, हवा ।
नेत्रा नीताः सततगतिना यद्विमानाग्रभूमिः। उ० मे08 तुम्हारे जैसे बहुत से बादल, वायु के झोंकों के साथ वहाँ के भवनों के ऊपरी खंडों में घुसकर।
___ मही 1. अवनि - [ अव + अनि] पृथ्वी।
तामुन्निद्रामवनिशयनां सौधवातायनस्थः । उ० मे० 28 भवन के झरोखों पर बैठकर उसे देखना, उस समय वह धरती पर उनींदी सी पड़ी मिलेगी। अन्वेष्टव्यामवनिशयने संनिकीणक पाश्वा । उ० मे० 30
जो वहीं कहीं धरती पर एक करवट पड़ी होगी। 2. क्षिति [ क्षि + क्तिन्] पृथ्वी।
तस्योत्संगे क्षितितलगतां तां च दीनां ददर्श। उ० मे० 62
उसने देखा कि वह बेचारी उस भवन में धरती पर पड़ी हुई है। 3. भुव - पृथ्वी।
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तार पाण्डुः । पू० मे० 18 पृथ्वी का उठा हुआ ऐसा स्तन हो, जिसके बीच में काला हो और चारों ओर पीला हो। अन्तस्तोयं मणिमयभुवस्तुंगमभ्रंलिहाग्राः। उ० मे० 1 यदि तुम्हारे भीतर नीला जल है, तो उनकी धरती भी नीलम से जड़ी हुई है,
और यदि तुम ऊँचे पर हो तो उनकी अटरियाँ भी आकाश चूमती हैं। भुवि - पृथ्वी। स्रोतोभूत्वा भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम्। पू० मे० 49 रन्तिदेव की कीर्ति बनकर नदी के रूप में धरती पर बह रही है। विन्यस्यन्ती भुवि गणना देहलीदत्तपुष्पैः। उ० मे० 27
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