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कालिदास पर्याय कोश पश्चादुच्चैर्भुज तरुवनं मण्डलेनाभिलीनः। पू० मे० 40
उन वृक्षों पर छा जाना, जो उनके ऊँचे उठे हुए बाँह के समान खड़े होंगे। 4. स्थली - [ स्थल् + ङीष्] वनस्थल, वन।
पश्यन्तीनां न खलु बहुशो न स्थली देवतानां। उ० मे० 49 उस समय वन के देवता भी मेरी दशा पर तरस खाकर।
वपु 1. अंग - [अङ्ग + अच्] शरीर, अंग या शरीर का अवयव।
ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभंगाय तस्मिन्मुक्ताध्वानं। पू० मे० 58 तुम पर बिगड़ कर उछलने के लिए मचलें और अपने अंग तुड़वाने के लिए तुम पर सींग चलाने के लिए झपटें। अङ्गेनाङ्गं प्रतनु तनुना गाढतप्तेन तप्तं। उ० मे० 44
वह अपने शरीर के दुबलेपन, तपन से यह समझ लेता है। 2. गात्र - [गै + वन्, गातुरिदं वा, अण्] शरीर।
शय्योत्सङ्गे निहितमसकृदुःखदुःखेन गात्रम्। उ० मे0 35 बार-बार दुःख से पछाड़ खा-खाकर किसी प्रकार अपने शरीर को सँभाले हुए
पलँग के पास पड़ी हुई है। 3. वपु - [ वप् + उसि] शरीर, देह। ।
श्यामं वपुरतितरां कान्तिमापत्स्यते ते। पू० मे० 15 इससे सजा हुआ, तुम्हारा साँवला शरीर ऐसा सुन्दर लगने लगा है, जैसे। जालोद्गीणैरुपचित वपुः केश संस्कार धूपैः। पू० मे० 36 बालों को सुगंधित करके, अगरू की धूप का जो धुआँ झरोखों से निकलता होगा, उससे तुम्हारा शरीर बढ़ेगा। नङ्गी भक्त्या विरचित वपुः स्तम्भितान्तः। पू० मे० 64
वसन
1. अंशुक - [ अंशु + क - अंशव० सूत्राणि विषया यस्य] कपड़ा, सामान्यतः
पोशाक।
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