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कालिदास पर्याय कोश वेश्यास्त्वत्तो नखपदसुखान्प्राप्य वर्षाग्रबिन्दुना। पू० मे० 39 उन वेश्याओं के नख-क्षतों पर जब तुम्हारी ठंडी-ठंडी वर्षा की बूंदे पड़ेंगी, तब उन्हें सुख प्राप्त होगा। धारापातैस्त्वमिव कमलानयभ्यवर्षन्मुखानि। पू० मे० 52 मुखों पर उसी प्रकार बरसाए थे, जैसे कमलों पर तुम अपनी जलधारा बरसाते हो। वृष्टि - [वृष् + क्तिन्] बारिश, बारिश की बौछार।। वान्तवृष्टिजम्बूकुञ्ज प्रतिहतरयं तोयमादाय गच्छेः। पू० मे० 21 जल बरसा चुको तो, जामुन की कुंजों में बहता हुआ जल पीकर आगे बढ़ना। तान्कुर्वीथास्तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णान्। पू० मे० 58 तब तुम उनके ऊपर धुआँधार ओले बरसा कर उन्हें तितर-बितर कर देना।
शैलोदग्रास्त्वमिव करिणो वृष्टिमन्तः प्रभेदात्। उ० मे० 13 पहाड़ जैसे ऊँचे डील-डौल वाले वहाँ के हाथी वैसे ही मद बरसाते हैं, जैसे तुम पानी बरसाते हो।
वेश्म (गुफा) 1. कंदरा - [कम् + दृ + अच्] गुफा, घाटी।
निर्वादस्ते मुरज इव चेत्कन्दरेषु ध्वनिः । पू० मे0 60 यदि तुम भी गरजकर पहाड़ की खोहों को गुंजाकर मृदंग के समान शब्द कर
दोगे तो। 2. ग्रहण - [ग्रह + ल्युट्] गुफा।
मयूरं पश्चाद्रिग्रहणगुरुभिर्गर्जितैर्नर्तयैथाः। पू० मे० 48 तुम अपनी गरज से पर्वत की गुफाओं को गुंजा देना, जिसे सुनकर वह मोर
नाच उठेगा। 3. वेश्म - [विश् + मनिन्] गुफा, कंदरा।
उद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर्यौवनानि। पू० मे० 27 पहाड़ी की गुफाओं को रति करने के समय वहाँ के छैले काम में लाते हैं।
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