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मेघदूतम्
बढेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः । पू० मे० 15 जैसे मोर मुकुट पहने हुए ग्वाले का वेश बनाए हुए श्रीकृष्ण जी (विष्णु) आकर खड़े हो गए हों। श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः। 61 जैसे बलि को छलने के समय भगवान विष्णु का साँवला चरण लंबा और
तिरछा हो गया था। 2. शार्ङ्गपाणि - [शृङ्ग + अण् + पाणिः] विष्णु का विशेषण, विष्णु।
शापान्तो मे भुजग शयनादुत्थिते शाङ्गपाणौ। उ० मे० 53 जब विष्णु भगवान शेषनाग की शैया से उठेगे, उसी दिन मेरा शाप भी बीत
जाएगा। 3. शाङ्गिण - [शार्ङ्ग + इनि] विष्णु का विशेषण, विष्णु।
त्वय्यादातुं जलमवनते शाङ्गिणो वर्ण चौरे। पू० मे० 50 जब तुम विष्णु भगवान का साँवला रूप चुराकर जल पीने के लिए झुकोगे।
वीणा
1. तंत्री - [तन्त्रि + ङीष्] वीणा, वीणा की डोरी।
तन्त्रीमार्दा नयनसलिलैः सारयित्वा कथं चिद्। उ० मे० 26
वह अपनी आँखों के आँसुओं से भीगी हुई वीणा को तो जैसे-तैसे पोंछ लेगी। 2. वीणा - [वेति वृद्धिमात्रमपगच्छति - वी + न, नि० पत्वम्] सारंगी, वीण।
सिद्धद्वन्द्वैर्जलकणभयाद्वीणिभिर्मुक्त मार्गः। पू० मे० 49 सिद्ध लोग अपनी वीणा भीगकर बिगड़ जाने के डर से तुम्हारे रास्ते से वे दूर ही रहेंगे। उत्सङ्गे वा मलिन वसने सौम्य निक्षिप्य वीणा। उ० मे० 26 हे मित्र! वह मैले कपड़े पहने हुए, गोद में वीणा लिए मिलेगी।
वृष्टि 1. वर्षा - [ वृष् + अच् + टप्] बरसात, बारिश, वृष्टि।
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