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कालिदास पर्याय कोश
2. स्कन्द - [ स्कन्द् + अच्] कार्तिकेय, स्कन्द भगवान।
तत्र स्कन्दं नियत वसतिं पुष्पमेघीकृतात्मा पुष्प सारैः। पू० मे० 47 वहाँ स्कन्द भगवान भी सदा निवास करते हैं, इसलिए तुम फूल बरसाने वाले बादल बनकर, फूल बरसाकर उन्हें स्नान करा देना।
स्वर्ग 1. दिव - [दिव् + क] स्वर्ग, आकाश।
शैषैः पुण्यैर्हतमिवदिवः कान्तिमत्खण्डमेकम्। पू० मे० 32 अपने बचे हुए पुण्य के बदले, स्वर्ग का एक चमकीला भाग लेकर उसे अपने साथ धरती पर उतार लाए हों। स्वर्ग - [ स्वरितं गीयते - गै + क, सु + ऋज् + घञ्] बैकुंठ, इंद्र का स्वर्ग। स्वल्पीभूतेसुचरितफले स्वर्गिणांगांगतानां। पू० मे० 32 मानो स्वर्ग में अपने पुण्यों का फल भोगने वाले पुण्यात्मा लोग पुण्य समाप्त होने से पहले ही। जह्रोः कन्यां सगरतनय स्वर्गसोपानपङ्क्तिम्। पू० मे० 54 वे गंगाजी मिलेंगी, जिन्होंने सीढ़ी बनकर सागर के पुत्रों को स्वर्ग पहुंचा दिया था।
हय
वाह - [वह् + घञ्] घोड़ा। पत्रश्यामा दिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः। उ० मे० 13 पत्ते के समान साँवले वहाँ के घोड़े अपने रंग और अपनी चालों में सूर्य के
घोड़ों को भी कुछ नहीं समझते। 2. हय - [ हय् (हि) + अच्] घोड़ा।
पत्रश्यामा दिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः। उ० मे० 13 पत्ते के समान साँवले वहाँ के घोड़े अपने रंग और अपनी चालों में सूर्य के घोड़ों को भी कुछ नहीं समझते।
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