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कालिदास पर्याय कोश
हे बड़भागी मेघ! अपनी यह वियोग की दशा दिखाकर वह यह बता रही होगी कि मैं तुम्हारे वियोग में सूखी जा रही हूँ। मत्सादृश्यं विरहतनु वा भावगम्यं लिखन्ती। उ० मे० 25 अपनी कल्पना से मेरे इस विरह से दुबले शरीर का चित्र बनाती मिलेगी। शेषान्मासान्विरह दिवस स्थापितस्यावधेर्वाः। उ० मे० 27 मेरे विरह के दिन से ही जिन्हें रखती चलती थी गिन रही होगी कि अब विरह के कितने महीने बच गए हैं। आधिक्षामां विरह शयने संनिषण्णैकपाा । उ० मे0 31 बिछोह की चिंता से सूखी हुई सूने पलंग पर एक करवट लेटी हुई।
आधे बद्धा विरहदिवसे या शिखा दाम हित्वा। उ० मे० 34 बिछड़ने के दिन से ही उसने अपने जुड़े की माला खोलकर जो इकहरी चोटी बाँध ली थी। इत्यं भूता प्रथम विरह तामहं तर्कयामि। उ० मे० 36 इसीलिए मैं सोचता हूँ कि वह इस पहले-पहले बिछोह से दुबली हो गई होगी। पश्चादावां विरह गुणितं तं तमात्माभिलाषं। उ० मे० 53 फिर तो हम दोनों, बिछोह के दिनों में सोची हुई अपने मन की सब साधे । स्नेहानाहुः किमपि विरहे ध्वंसिनस्ते त्वभोगादि। उ० मे0 55 न जाने लोग यह क्यों कहा करते हैं कि विरह में प्रेम कम हो जाता है। सच तो यह है कि जब चाही हुई वस्तुएँ नहीं मिलती, तभी उन्हें पाने के लिए प्यास बढ़ जाती है। आश्वास्यैवं प्रथमविरहोदनशोकां सखीं ते। उ० मे0 56 पहली बार के बिछोह से दुखी अपनी भाभी को इस प्रकार दाढ़स बंधाकर। कामक्रीडाविरहित जने विप्रयुक्त विनोदः। उ० मे० 63 वियोग के समय उन लोगों का भी मन बहलावेगी, जिन्हें विलास मिला ही नहीं।
विष्णु
1. विष्णु - [ विष् + नुक्] विष्णु।
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