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मेघदूतम्
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मित्र! यह तो मैं जानता हूँ कि तुम मेरे काम के लिए बिना रुके झटपट जाना चाहोगे। प्रस्थानं ते कथमपि सखे लम्बमानस्य भवति। पू० मे० 65 हे मित्र! यदि वे अपने गर्म शरीरों को ठंडक मिलने के कारण तुम्हें न छोड़ें तो। मद्गेहिन्याः प्रिय इति सखे चेतसा कातरेण। उ० मे० 17 देखो मित्र! जब मैं तुम्हें (बिजली के साथ) देखता हूँ, तब मेरा मन उदास हो
जाता है। 3. सुहृद - [ सु + डु + हृद्] मित्र, सखा।
न खलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्याः । पू० मे० 42 जो अपने मित्रों का काम करने का बीड़ा उठता है, वह आलस नहीं किया करता। यामध्यास्ते दिवसविगमे नीलकण्ठः सुहृदः। उ० मे० 19 जिसके बीच में तुम्हारा मित्र मोर नित्य साँझ को आकर बैठा करता है। कान्तोदन्तः सुहृदुपनतः संगमात्किंचिदूनः। उ० मे० 42 मित्र के मुंह से पति का संदेश पाकर अपने प्रिय के मिलन से कुछ कम सुख
थोड़े ही मिलता है। 4. सौम्य - [ सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्] प्रिय, सुखद, मित्र।
कृत्वा तासामभिगमपां सौम्य सारस्वती नामन्तः। पू० मे० 53 प्यारी (मित्र) मदिरा को छोड़कर जिस सरस्वती नदी का जल पीते थे, वही जल तुम भी पी लोगे तो। कच्चित्सौम्य व्यवसितमिदं बन्धुकृत्यं त्वया मे। उ० मे० 57 क्यों मित्र! तुमने मेरा यह प्यारा काम करने की ठान ली है या नहीं।
मिथुन 1. दंपती - [ जाया च पतिश्च द्व० स० जायाशब्दस्य दमादेशः द्विवचन] पति
और पत्नी। संयोज्यैतौ विगलित शुचौ दंपती हृष्टचित्तौ। उ० मे० 61 उन्होंने एक दूसरे से अलग पति-पत्नी को फिर मिला दिया।
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