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मेघदूतम्
त्वामुत्कण्ठाविरचित पदं मन्मुखेनेदमाह। उ० मे० 45 इसलिए उसने बड़े चाव से मेरे मुँह से यह कहला भेजा है। धारासिक्तस्थलसुरभिणस्त्वन्मुखस्यास्य बाले। उ० मे० 48 हे बाला! तुम्हारे उस मुख से जिसमें से ऐसी सोंधी गंध आती है, जैसे पानी
पड़ने पर धरती से आती है। 3. वक्त्र - [ वक्ति अनेन वच् – करणे ष्ट्रन्] मुख, चेहरा।
वक्त्रच्छायां शशनि शिखिनां बर्हभारेषु केशान्। उ० मे० 46
चंद्रमा में तुम्हारा मुख, मोरों के पंखों में तुम्हारे बाल। 4. वदन - [ वद् + ल्युट्] चेहरा, मुख।
प्रलेयास्त्रं कमलवदनात्सोऽपि हर्तुं नलिन्याः। पू० मे0 43 अपनी प्यारी कमलिनी के मुख कमल पर पड़ी हुई ओस की बूंदे पोंछने के लिए। काङ्क्षत्यन्यो वदनमदिरां दोहदच्छद्मनास्याः। उ० मे० 18 उसके मुँह से निकले हुए मदिरा की छींटे पाना चाहता होगा।
मेघ
1. अभ्र - [ अभ्र + अच्] बादल।
मुक्ता जाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्। पू० मे० 67 बादल ऐसे छाए रहते हैं, जैसे कमनियों के सिर पर मोती गुंथे हुए जूड़े। अन्तस्तोयं मणिमयभुवस्तुंगमभ्रंलिहाग्राः। उ० मे० 1 हे मेघ! यदि तुम्हारे भीतर नीला जल है, तो उनकी धरती भी नीलम से जड़ी हुई है, और यदि तुम ऊँचे पर हो तो उनकी अटरियाँ भी आकाश चूमती हैं। साभ्रेऽह्नीव स्थलकमलिनी न प्रबुद्धां न सुप्ताम्। उ० मे0 32 वह ऐसी दिखाई देगी, जैसे बदली के दिन धरती पर खिलने वाली कोई
अधखिली कमलिनी हो। 2. अंबुवाह - [अम्ब् + उण् + वाहः] बादल।
भर्तुमित्रं प्रियम विधवे विद्धि मामम्बुवाहं। उ० मे० 41
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