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मेघदूतम्
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पत्ते खिसककर निकल जाते हैं, कानों पर धरे हुए सोने के कमल गिर जाते हैं। पत्रश्यामा दिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः। उ० मे0 13
पत्ते के समान साँवले वहाँ के घोड़े, सूर्य के घोड़ों को भी कुछ नहीं समझते। 3. पर्ण - [पर्ण + अच्] पंख, पत्ता, पान का पत्ता।
पाण्डुच्छाया तटरुहतरुभ्रंशिभिर्जीर्ण पणैः । पू० मे0 31 तीर के वृक्षों के पीले पत्ते झड़-झड़ कर गिरने से उसका रंग पीला पड़ गया होगा।
पाण्डु 1. कपिश - [कपि + श] भूरे रंग का, सुनहरा।
नीपं दृष्ट्वा हरितकपिशं केसरैः। पू० मे० 22 अधपके हरे-पीले कदंब के फूलों पर। पाण्डु - [पण्ड् + कु, नि० दीर्घः] पीत-धवल, सफेद-सा, पीला, पीताभश्वेतरंग। मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डः। पू० मे० 18 मानो वह पृथ्वी का उठा हुआ स्तन हो, जिसके बीच में काला हो और चारों
ओर पीला हो। पाण्डुच्छायोपवनवृतयः केतकैः सूचि भिन्नैः। पू० मे० 25 वहाँ के फूले हुए उपवनों के बाड़, फूले हुए केवड़ों के कारण उजले (पीले) दिखाई देंगे। पाण्डुच्छाया तटरुहतरुभ्रंशिभिर्जीर्णपणैः। पू० मे0 31 तीर के वृक्षों के पीले पत्ते झड़-झड़ कर गिरने से उसका रंग पीला पड़ गया होगा। नीतालोधप्रसवरजसा पाण्डुतामानने श्रीः। उ० मे० 2 अपने मुँहों को लोध के फूलों का पराग मलकर गोरा करती हैं।
पुत्र 1. तनय - [तनोति विस्तारयति कुलम्- तन् + कयन्] पुत्र, संतान।
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