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मेघदूतम्
मैं तुम्हें वह मार्ग समझा +, जिधर से जाने में तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा। सारङ्गास्ते जललवमुचः सूचयिष्यन्ति मार्गम्। पू० मे० 22 हे मेघ! वे हरिण और हाथी तुम्हें मार्ग बताते चलेंगे। सिद्धद्वन्द्वैर्जलकणभयाद्वीणिभिर्मुक्त मार्गः। पू० मे० 49 वे सिद्ध लोग अपनी वीणा भीगकर बिगड़ जाने के डर से तुम्हारे मार्ग से दूर ही
रहेंगे।
निशो मार्गः सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्। उ० मे० 11 जब दिन निकलता है तो उन वस्तुओं को मार्ग में बिखरा हुआ देखकर समझ लेते हैं कि वे कामिनी स्त्रियाँ रात में किधर से गई होंगी। वापी चास्मिन्मरकतशिलाबद्धसोपान मार्गा। उ० मे० 16 एक बावड़ी मिलेगी, जिसकी सीढ़ियों वाले मार्ग में नीलम जड़ा हुआ है। संकल्पैस्तैर्विशति विधिना वैरिणा रुद्धमार्गः। उ० मे० 44 दूर बैठे हुए साथी का मार्ग तो बैरी ब्रह्मा रोके बैठा है।
पथिक 1. पथि - [पथ् + इलच्] यात्री, राहगीर, बटोही।
यो वृन्दानि त्वरयति पथि श्राम्यतां प्रोषितानां। पू० मे० 41
उन थके हुए बटोहियों के मन में भी घर लौटने की हड़बड़ी मचा देता हूँ। 2. पथिक - [पथिन् + ष्कन्] यात्री, मुसाफिर ।
प्रेक्षिष्यन्ते पथिकवनिताः प्रत्ययादाश्वसन्त्यः। पू० मे० 8 तब परदेसियों की स्त्रियाँ बड़े भरोसे से ढाढ़स पाकर तुम्हारी ओर एकटक देखेंगी।
पद 1. चरण - [चर् + ल्युट्] पैर।
तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासमर्धेन्दुमौले। पू० मे० 59 वहाँ एक शिला पर शिवजी के पैर की छाप बनी हुई मिलेगी।
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