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मेघदूतम्
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उस पति [यक्ष] को यह शाप दिया कि अब एक वर्ष तक तू अपनी पत्नी से नहीं मिल पाएगा, इस शाप से उसका सारा राग-रंग जाता रहा। भर्तुः कण्ठच्छविरिति गणैः सादरंवीक्ष्यमाणः। पू० मे० 37 शिवजी के गण, तुम्हें अपने स्वामी शिवजी के कंठ के समान ही नीला देखकर तुम्हें बड़े आदर से निहारेंगे। कच्चिद्भर्तुः स्मरसि रसिके त्वं हि तस्य प्रियेति। उ० मे0 25 तुम अपने जिस पति की प्यारी हो, उसे भी कभी स्मरण करती हो। भर्तुमित्रं प्रियमविधवे विद्धि मामम्बुवाह। उ० मे0 41 मैं तुम्हारे पति का प्रिय मित्र मेघ, तुम्हारे पास उनका संदेश लेकर आया हूँ। प्राप्योदन्तं प्रमुदितमना सापि तस्थौ स्वभर्तुः। उ० मे0 60 अपने पति (प्यारे) का संदेश पाकर वह भी फूली न समाई।
भुवन 1. जगत - [गम् + क्विप् नि० द्वित्वं तुगागमः] संसार।
एक प्रख्या भवति हि जगत्यङ्गनानां प्रवृत्तिः। उ० मे० 29 संसार में सभी स्त्रियाँ अपनी सखियों के दुःख में उनका साथ नहीं छोड़ती। भुवन - [भवत्यत्र, भू- आधारादौ + क्युन्] लोक, पृथ्वी, संसार। जातं वंशे भुवन विदिते पुष्करावर्तकानां। पू० मे० 6 संसार में पुष्कर और आवर्तक नाम के जो बादलों के दो ऊँचे कुल हैं, उन्हीं में तुमने जन्म लिया है।
भूषण 1. आभरण - [आ + भृ + ल्युट्] आभूषण, सजावट।
प्रत्यादिष्टाभरणरुचयश्चन्द्रहास व्रणाङ्कः। उ० मे० 13 उन घावों के चिह्नों को ही आभूषण समझ लिया है, जो उन्होंने चंद्रहास नाम
की करवाल से खाये थे। 2. भूषण - [भूष् + ल्युट्] अलंकार, श्रृंगार, सजावट का सामान।
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