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कालिदास पर्याय कोश
पुष्पोद्भेदं सह किसलयैर्भूषणानां विकल्पान्। उ० मे० 12 कोमल, पत्ते, और फूल, ढंग-ढंग के आभूषण।
भ्राता 1. बंधु - [बन्ध + उ] रिस्तेदार, बंधु, भाई।
जालोद्गीणैरुपचितवपुः केशसंस्कार धूपैर्बन्धुप्रीत्या। पू० मे० 36 वहाँ की स्त्रियों के बालों को सुगंधित करके, अगरू की धूप का जो धुआँ झरोखों से निकलता होगा, उससे तुम्हारा शरीर बढ़ेगा और तुम्हें अपना सगा समझकर। हित्वा हालामभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्का बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे। पू० मे० 53 दोनों को एक समान बंधु मानने वाले और समान प्रेम करने वाले बलराम जी, महाभारत के युद्ध में किसी की ओर से भी नहीं लड़े थे, वे अपनी प्यारी रेवती के नेत्रों की छाया पड़ी हुई प्यारी मदिरा को छोड़कर। भ्रातृ - [भ्राज + तृच् पृषो०] भाई, सहोदर, घनिष्ठ मित्र। व्यापन्नामविहतगतिर्द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम्। पू० मे०१ तुम अपनी उस (भाभी) भाई की पत्नी को अवश्य ही पा जाओगे।
1. भृकुटि - [ध्रुवः कुटि:] भौंह।
गौरीवक्त्रभृकुटिरचनां या विहस्येव फेनैः। पू० मे० 54 वे इस फेन की हँसी से खिल्ली उड़ाती हुई उन पार्वती जी का निरादर कर रही
हों जो उन पर भौहे तरेरती हैं। 2. भ्रू - [भ्रम् + डू] भौंह, आँख की भौंह।
त्वय्यायत्तं कृषिफलमिति भ्रूविलासानभिज्ञैः प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः। पू० मे० 16 खेती का होना न होना भी तुम्हारे ही भरोसे है, इसलिए किसानों की वे भोलीभाली स्त्रियाँः, जिन्हें भौं चलाकर रिझाना नहीं आता भी तुम्हें बड़े प्रेम व आदर से देंखेगी।
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