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मेषदूतम्
नितम्ब 1. जघन - [हन् + अच् + द्वित्वम्] पुट्ठा, कूल्हा, चूतड़।
विवृतजघनां को विहातुं समर्थः। पू० मे० 45 कौन ऐसा रंगीला होगा, जो कामिनी की खुली हुई जाँघों (नितंबों) को
देखकर उसका रस लिए बिना ही वहाँ से चल दे। 2. नितम्ब [निभृतं तम्यते कामुकैः, तमु कांक्षायाम्] चूतड़, श्रोणिप्रदेश, कूल्हा।
हृत्वा नीलं सलिल वसनं मुक्तरोधो नितम्बम्। पू० मे० 45
अपने तट के नितंबों पर से अपने जल के वस्त्र खिसक जाने पर। 3. श्रोणि - [श्रोण + इन् वा ङीप्] कूल्हा, नितंब, चूतड़।
श्रोणी भारादलसगमना स्तोकनमा स्तनाभ्यां । उ० मे० 22 नितंबों के बोझ से धीरे-धीरे चलने वाली और स्तनों के भार से कुछ झुकी हुई।
निदाघ 1. धर्म - [धरति अङ्गात् - घृ + मक्, नि० गुणः] ताप, गमी।
ताभ्योमोक्षस्तव यदि सखे घर्मलब्धस्य न स्यात्। पू० मे0 65 हे मित्र! यदि वे अपने गर्म शरीरों को ठंडक मिलने के कारण तुम्हें न छोड़े तो। घर्मान्तेऽस्मिन्विगणय कथं वासराणि व्रजेयुः। उ० मे0 48
गर्मी के बीतने पर मैं किसके सहारे अपने दिन काट पाऊँगा। 2. निदाघ - [नितरां दह्यते अत्र - नि + दह + घङ्] ताप, गर्मी, ग्रीष्म ऋतु।
आसारेण त्वमपि शमयेस्तस्य नैदाघमग्निं। पू० मे० 19 तुम भी उसके जंगलों में लगी हुई गर्मी की आग बुझा देना।
नीप 1. कदम्ब -[कद् + अम्बच्] एक प्रकार का वृक्ष, कदंब वृक्ष।
त्वत्संपर्कात्पुलकितमिव प्रौढ़पुष्पैः कदम्बैः। पू० मे० 27, फूले हुए कदंब के वृक्षों को देखकर ऐसा जान पड़ेगा, मानो तुमसे भेंट के कारण उनके रोम-रोम फहरा उठे हों।
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