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कालिदास पर्याय कोश लाक्षारागं चरणकमलन्यासयोग्यं च यस्यामः। उ० मे0 12 पैरों में लगाने का महावर आदि सिंगार की जितनी वस्तुएँ हैं। मात्मानं ते चरणपतितं यावदिच्छामि कर्तुम्। उ० मे० 47 यह चित्र बनाना चाहता हूँ कि तुम्हें मनाने के लिए मैं तुम्हारे पैरों में पड़ा हूँ। न त्वार्यायाश्चरणकमलं कालिदासश्चकार। उ० मे० 63 कालिदास ने आर्यादेवी के चरण कमलों में प्रणाम करके। पद - [पद् + अच्] पैर। वन्द्यैः पुंसां रघुपतिपदैरङ्कित मेखलासु। पू० मे0 12 इसकी ढालों पर भगवान् रामचन्द्र जी के उन पैरों की छप जहाँ-तहाँ पड़ी हैं, जिन्हें सारा संसार पूजता है। खिन्नः खिन्न शिखरिषु पदं न्यस्य गन्तासि। पू० मे० 13 जब कभी थकने लगे, तो पर्वत की चोटियों पर अपने चरण रखते हुए ठहर
जाना।
3. पाद - [पद् + घञ्] पैर, चरण।
पादन्यासैः क्वणितरशनास्तत्र लीलावधूतैः। पू० मे0 39 पैरों पर थिरकती हुई जिन वेश्याओं की करधनी के धुंघरू बड़े मीठे-मीठे बज रहे होंगे। श्यामः पादो बलि नियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः। पू० मे0 61 जैसे बलि को छलने के समय भगवान विष्णु का साँवला चरण।
पर्ण
1. दल - [दल् + अच्] पत्ता, फूल की पंखड़ी, कोंपल।
पुत्र प्रेम्णा कुवलदलप्रापि कर्णे करोति। पू० मे० 48 पुत्र पर प्रेम दिखलाने के लिए अपने उन कानों पर सजा लेती हैं, जिन पर
कमल की पंखड़ी सजाया करती थीं। 2. पत्र - [पत् + ष्ट्रन] पत्ता, फूल की पत्ती।
पत्रच्छेदैः कनककमलैः कर्णविभ्रंशिमिव। उ० मे० 11
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