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कालिदास पर्याय कोश त्वमासारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मू । पू० मे० 17 जब तुम मूसलाधार पानी बरसाकर जंगलों की आग बुझाओगे तो वह तुम्हारा
उपकार मानकर अपनी चोटी पर आदर के साथ ठहरावेगा। 3. ज्योति - [द्योतते द्युत्यते - धुत् + इसुन् दस्य जा देशः] सूर्य, अग्नि।
धूमज्योतिः सलिल मरुतां संनिपातः क्व मेघः। पू० मे० 5
कहाँ तो धुएँ, अग्नि, जल और वायु के मेल से बना हुआ बादल। 4. पावक - [पू + ण्वुल्] आग।
धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस्तं मयूरं। पू० मे0 48 वह मोर जिसके नेत्रों के कोने, शिवजी के सिर पर धरे हुए चंद्रमा की चमक से
दमकते रहते हैं। 5. हुतवह - [हु + क्त + वहः] आग।
रक्षाहेतोर्नवशशिभृता वासवीनां चमूनामत्यापादित्यं हुतवह मुखे संभृतं तद्धि तेजः। पू० मे० 47 इन्द्र की सेनाओं को बचाने के लिये शिवजी ने सूर्य से भी बढ़कर जलता हुआ अपना जो तेज अग्नि में डालकर इकट्ठा किया था, उसी तेज से।
तरलगुटिका 1. तरल गुटिका - मोती हाराँस्ताराँस्तरलगुटिकान्कोटिशः शङ्खशुक्तीः। पू० मे० 34 कहीं तो करोड़ों मोतियों की ऐसी मालाएँ सजी हुई दिखाई देंगी, जिनके बीच-बीच में बड़े-बड़े रत्न गुंथे हुए होंगे, कहीं करोड़ों शंख और सीपियाँ रखी
हुई मिलेंगी। 2. मुक्ता - [मुक्त + टाप्] मोती।
प्रेक्षिष्यन्ते गगनगतयो नूनमावर्त्य दृष्टीरेकं मुक्तागुणमिव भुवः स्थूलमध्येन्द्रनीलम्। पू० मे० 50 तुम ऐसे दिखाई दोगे मानो पृथ्वी के गले में पड़े हुए एक लड़े मोती के हार के बीच में एक बड़ी मोटी सी इन्द्रनीलमणि पोह दी गई हो।
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