________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
702
कालिदास पर्याय कोश तुम अपनी उस पतिव्रता भाभी को अवश्य ही पा जाओगे जो बैठी मेरे लौटने के दिन गिन रही होगी। या मध्यास्ते दिवसविगमे नीलकण्ठः सुहृदः। उ० मे० 19 तुम्हारा मित्र मोर नित्य दिन के अंत (सांझ को) में आकर बैठा करता है। गाढोत्कण्ठां गुरुषु दिवसेष्वेषु गच्छत्सु बालां। उ० मे० 23 विरह के कठोर दिन बड़ी उतावली से बिताते-बिताते उसका रूप भी बदल गया होगा। शेषान्मासान्विरहदिवस स्थापितस्यावधेर्वा । उ० मे० 27 मेरे विरह के दिन से ही ...............अब विरह के कितने महीने बच गए हैं, कितने महीने बच गए हैं। आद्ये बद्धा विरह दिवसे या शिखा दाम हित्वा। उ० मे० 34 बिछोह के दिन से ही उसने अपने जूड़े की माला खोलकर जो वह इकहरी चोटी
बाँध ली थी। 3. दिवा - [दिव् + का] दिन में, दिन के समय।
स्निग्धाः सख्यः कथमपि दिवा तां न मोक्ष्यन्ति। उ० मे० 29 उसकी प्यारी सखियाँ, उसे दिन में कभी अकेली नहीं छोड़ेंगी। वासर - [सुखं वासयति जनान् वास + अर्] दिन। धर्मान्तेऽस्मिन्विगणय कथं वासराणि व्रजेयु:असंसक्त प्रवितत घनव्यस्त- सूर्यातपानि। उ० मे० 48 गर्मी के बीतने पर जब चारों ओर उमड़ी हुई घने बादलों की घय सूर्य पर छा जायगी, उस समय मैं किसके सहारे अपने दिन काट पाऊँगा। इत्याख्याते सुरपतिसखः शैलकुल्यापुरीषु स्थित्वा स्थित्वा धनपतिपुरीं वासरै कैश्चिदाप। उ० मे0 62 यह सुनकर बादल वहाँ से चल दिया और कभी पहाड़ियों पर कभी नदियों के पास और कभी नगर में ठहरता हुआ थोड़े ही दिनों में कुबेर की राजधानी अलका पहुँच गया।
For Private And Personal Use Only