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मेघदूतम्
दूराल्लक्ष्यं सुरपति धनुश्चारुणा तोरणेन। उ० मे0 15
इन्द्र धनुष के समान सुन्दर गोल फाटक वाला हमारा दूर से ही दिखाई पड़ेगा। 3. मोघ - [मुह् + घ अच् वा, कुत्वम्] धनुष ।
सभ्रूभंगप्रतिहत नयनैः कामलक्ष्येष्वमोधैः। उ० मे० 14 जो अपने प्रेमियों की ओर बाँकी चितवन चलाती हैं, उसी से कामदेव अपने धनुष का काम निकाल लेता है।
नक्त
1. क्षपा - [क्षप् + अच् + यप्] रात।
निर्वेक्ष्यावः परिणतशरच्चन्द्रिकासु क्षपासु। उ० मे0 53
मन की सब साधे शरद की सुहावनी चाँदनी रात में पूरी कर ही डालेंगे। 2. नक्त - [नब् + क्त] रात।
गच्छन्तीनां रमणवसतिं योषितां तत्र नक्तं। पू० मे० 41
वहाँ पर जो स्त्रियाँ अपने प्यारों से मिलने के लिए रात में निकली होंगी। 3. निशा - [नितरां श्यति तनूकरोति व्यापारान् - शो + क तारा०] रात।
निशो मार्गः सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्। उ० मे० 11 जब दिन निकलता है तो लोग समझ जाते हैं कि वे कामिनी स्त्रियाँ रात में किस मार्ग से गई होंगी। निशीथ - [निशेरते जना अस्मिन् – निशी अधारे थक तारा०] आधी रात। त्वत्संरोधापगविशदैश्चन्द्रपादैनिशीथे। उ० मे०१ आधीरात के समय खुली चाँदनी में। मत्संदेशैः सुखयितुमुलं पश्य साध्वीं निशीथे। उ० मे० 28
मेरा संदेश सुनाकर उसे सुख देने के लिए तुम आधीरात को उसे देखना। 5. प्रदोष - [प्रकृष्ट दोषो यस्य - प्रा० ब०] रात, रात्रि।
नित्य ज्योत्सनाः प्रतिहततमोवृत्तिरम्याः प्रदोषाः। उ० मे० 3 रातें सदा चाँदनी रहने से बड़ी उजली और मनभावनी होती हैं।
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