________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
682
कालिदास पर्याय कोश
उस चोटी पर बैठे हुए तुम वैसे ही दिखलाई दोगे, जैसे महादेव जी के उजले वृषभ के सीगों पर मिट्टी के टीलों पर टक्कर मारने से कीचड़ जम गया हो। तेनोदीची दिशमनुसरेस्तिर्यगायाः शोभि श्यामः पादो बलि नियमनाभ्युद्य तस्येव विष्णोः। पू० मे0 61 उत्तर की ओर उस सँकरे मार्ग में तुम वैसे ही लंबे और तिरछे होकर जाना, जैसे बलि को छलने के समय भगवान विष्णु का साँवला चरण लंबा और तिरछा हो गया था। श्री - [श्रि + क्विप, नि०] सौंदर्य, चारुता, लालित्य, कांति चमक, दीप्ति। कुन्दक्षेपानुगममधुकरश्रीमुषामात्मबिम्ब पात्रीकुर्वन्दशपुरवधूनेत्र कौतूहलानाम्। पू० मे0 51 दशपुर की उन रमणियों को रिझाना, जो ऐसी जान पड़ेगी, मानों उन्होंने कुन्द के फूलों पर उड़ने वाले भौरों की चमक चुरा ली हों। हस्ते लीलाकमलमलके बालकुन्दानुविद्धं नीतालोध्रप्रसवरजसा पाण्डुतामानने श्रीः। उ० मे० 2 हाथों में कमल के आभूषण पहनतीं हैं, अपनी चोटियों में नये खिले हुए कुन्द के फूल गूंथती हैं, अपने मुँहों को लोध के फूलों का पराग मलकर गोरा करती
हैं।
त्वय्यासन्ने नयनमुपरिस्पन्दि शङ्के मृगाक्ष्या मीन क्षोभाञ्चल कुवलयश्री तुलामिष्यतीति। उ० मे० 37 उस समय फड़कती हुई वह बाईं आँख उस नीले कमल जैसी सुन्दर दिखाई देगी, जो मछलियों के इधर-उधर आने-जाने से काँप उठा करता है।
काम (इच्छा) 1. अभिलाष - [अभि + लष् + धञ्] इच्छा, कामना, उत्कंठ, अनुराग।
एकः सख्यास्तव सह मया वामपादाभिलाषी काङ्क्षत्यन्यो वदन मदिरां दोहदच्छानास्याः। उ० मे० 18 जैसे मैं तुम्हारी सखी के पैर की ठोकर खाने के लिए तरस रहा हूँ, वैसे ही वह
For Private And Personal Use Only