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मेघदूतम्
683 अशोक भी फूलने का बहाना लेकर मेरी पत्नी के बाएं पैर की ठोकर खाने के लिए तरस रहा होगा और दूसरा मौलसिरी का पेड़ भी उसके मुँह से निकली हुई
मदिरा के छींटे पाना चाहता होगा। 2. इच्छा - [इष् + श + यप्] कामना, अभिलाषा, रुचि।
नृत्तारम्भे हर पशुपतेराईनागाजिनेच्छां शान्तोद्वेगस्तिमित नयनं दृष्टभक्तिर्भ वान्या। पू० मे० 40 जब महाकाल तांडव नृत्य करने लगें, उस समय ----शिवजी के मन में जो हाथी की खाल ओढ़ने के इच्छा होगी वह भी पूरी हो जाएगी। पार्वती जी
एकटक होकर शिवजी में तुम्हारी इतनी भक्ति देखती रह जाएँगी। 3. कांक्षा - [काञ्झ् + अ + यप्] कामना, इच्छा, अभिलाषा।
एकःसख्यास्तव सह मया वामपादाभिलाषी काङ्क्षत्यन्यो वदन मदिरां दोहदच्छद्मनास्याः। उ० मे० 18 जैसे मैं तुम्हारी सखी के पैर की ठोकर खाने के लिए तरस रहा हूँ वैसे ही वह अशोक का पेड़ भी उसके बाएँ पैर की ठोकर खाने के लिए तरस रहा होगा और वह मौलसिरी का पेड़ भी उसके मुँह से निकली हुई मदिरा के छींटे पाना चाहता होगा। काम - [कम् + घञ्] कामना, इच्छा, स्नेह, अनुराग। तेनार्थित्वंत्वयि विधिवशाद्दूरबन्धुर्गतोऽहं याचा मोघा वरमधि गुणे नाधमे लब्धकामा। पू० मे० 6 अपनी प्यारी से इतनी दूर लाकर पटका हुआ मैं अभागा तुम्हारे ही आगे हाथ पसार रहा हूँ, क्योंकि गुणी के आगे हाथ फैला कर रीते हाथ लौट आना अच्छा
है, पर नीच से मन चाहा फल पा जाना भी अच्छा नहीं है। 5. दोहद - [दोहमाकर्ष ददाति - दा+क] गर्भवती स्त्री की प्रबल रुचि।
एकः सख्यास्त्व सह मया वामपादाभिलाषी काङ्क्षत्यन्यो वदनमदिरां दोहदच्छद्मनास्याः। उ० मे० 18 जैसे मैं तम्हारी सखी के पैर की ठोकर खाने के लिए तरह तरस रहा है, वैसे ही वह भी फूलने का बहाना लेकर मेरी पत्नी के बाएँ पैर की ठोकर खाने के लिए तरस रहा होगा और उसके मुंह से निकले हुए मदिरा के छींटे पाना चाहता होगा।
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