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कालिदास पर्याय कोश त्वद्गंभीरध्वनिषु शनकैः पुष्करेष्वा हतेषु। उ० मे० 5
तुम्हारे गंभीर गर्जन के समान गूंजने वाले बाजों के मंद-मंद बजने पर। 2. गुरु -[गृ + कु, उत्वम्] भारी, बोझल, बड़ा, लंबा।
पश्चादद्रिग्रहण गुरुभिर्गर्जितैर्नर्तये थाः। पू० मे० 48 तुम अपनी गंभीर गरजन से पर्वत की गुफाओं को गुंजा देना जिससे मोर नाच उठेगा।
गौर 1. गौर - [गु + र, नि०] श्वेत, उज्ज्वल, स्वच्छ, सुंदर।
तस्या एव प्रभवमचलं प्राप्य गौरं तुषारैः। पू० मे० 56 जब तुम हिमालय की उस हिम से ढके उजली चोटी पर। सद्यः कृत्तद्विरददशनच्छेदगौरस्य तस्य। पू० मे0 63 और कैलास है, तुरंत कटे हुए हाथी दांत के समान गोरा। यास्यत्यूरुः सरसकदलीस्तम्भगौरश्चलत्वम्। उ० मे० 38
नये केले के खंभे के समान उसकी वह गोरी-गोरी जाँघ भी फड़क उठेगी। 2. शुभ्र - [शुभ + रक्] उज्ज्वल, श्वेत, चमकीला।
शुभ्र त्रिनयनवृषोत्खात पङ्कोपमेयाम्। पू० मे० 56 जैसे महादेव जी के उजले साँड़ के सींगों पर मिट्टी के टीलों पर टक्कर मारने से कीचड़ जम गया हो।
चण्डी 1. गौरी - [गौर ङीष्] पार्वती, कुमारी कन्या।
गौरी वक्त्रभृकुटिरचनां या विहस्येव फेनैः। पू० मे० 54 मानो वे इस फेन की हँसी से खिल्ली उड़ाती हुई, भौंह तरेरनी वाली पार्वतीजी का निरादर कर रही हों। क्रीडाशैले यदि च विचरेत्पाद चारेण गौरी। पू० मे० 64 कैलास पर जब पार्वती महादेव जी के हाथ में हाथ डाले टहल रही हों, तब।
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