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कालिदास पर्याय कोश शापस्यान्तं सदयहृदयः संविधायास्तकोपः। उ० मे० 61
उनका क्रोध उतर गया और उन्होंने अपना शाप लौटकर। 2. क्रोध - [क्रुध् + घञ्] कोप, गुस्सा।
संतप्तानां त्वमसि शरणंतत्पयोद प्रियायाः सन्देशं मे हर धनपतिक्रोध विश्लेषितस्य। पू० मे०7 अकेले तुम्हीं तो संसार के तपे हुए प्राणियों को ठंडक देने वाले हो, इसलिये हे मेघ! कुबेर के क्रोध से निकाले हुए और अपनी प्यारी से दूर पटके हुए मुझ बिछोही का संदेश।
1. क्षुद्र - [क्षुद् + रक्] सूक्ष्म, अल्प, तुच्छ, हल्का, कमीना, नीच।
क्षुद्रोऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर्यस्तथोच्चैः। पू० मे017 जब दरिद्र लोग भी आए हुए मित्र के उपकार का ध्यान करके उनका सत्कार
करने में नहीं चूकते थे तब ऊँचों का तो कहना ही क्या। 2. लघु - [लो कुः नलोपश्च] हल्का, तुच्छ, अल्प, न्यून।
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय। पू० मे० 21 जिसके हाथ रीते होते हैं उसी को सब दुरदुराते हैं, और जो भरा पूरा होता है, उसका सभी आदर करते हैं।
1. आकाश - [आ + काश + घञ्] आसमान, अंतरिक्ष ।
मामाकाशप्रणिहित भुजं निर्दयाश्लेष हेतोः। उ० मे0 49 जब कभी कसकर छाती से लगाने के लिये अपने हाथ ऊपर (आकाश में)
फैलाता हूँ। 2. खं - [खर्व + ड] आकाश, स्वर्ग।
गर्भाधानक्षणपरिचययान्नूनमाबद्धमालाः सेविष्यन्ते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः। पू० मे0 10
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