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कालिदास पर्याय कोश वधू दुकूलं कल हंसलक्षणं गजाजिनं शोणित बिन्दुवर्षिच। 5/67 कहाँ तो हंस छपी हुई सुन्दर चुंदरी ओढ़े आप और कहाँ रक्त की बूंद टपकाती हुई महादेव जी के कन्धे पर पड़ी हुई हाथी की खाल।
रवे तरंगिणी 1. रवे तरंगिणी :-आकाश गंगा।
सा व्यगाहत तरंगिणीमुमा मीनपंक्तिपुनरुक्तमेखला। 8/26 उस आकाश गंगा में जल विहार करने लगतीं, जहाँ उन की कमर के चारों ओर खेलने वाली मछलियाँ ऐसा लगती थीं, मानो उन्होंने दूसरी करधनी पहन ली
2. व्योमगंगा :-[व्ये+मनिन्+गंगा] स्वर्गीय गंगा, आकाशगंगा।
व्योमगंगा प्रवाहेषु दिङ्नाग मदगन्धिषु। 6/5 उस आकाशगंगा के प्रवाह में दिग्गजों के मद की सुगन्ध आया करती है।
लक्ष्मी 1. लक्ष्मी :-[लक्ष्+ई, मुट्+च] सौभाग्य, समृद्धि, सौन्दर्य, लक्ष्मी।
उमामुखं तु प्रतिपद्यलोला द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप लक्ष्मीः। 1/43 जब से लक्ष्मी चन्द्रमा और कमल दोनों के गुण वाले पार्वती जी के मुख में आ बसी, तब से उन्हें चन्द्रमा और कमल दोनों का आनन्द एक साथ मिलने लगा। तयोरुपर्यायतनालदंडमाधत्त लक्ष्मीः कमलातपत्रम्। 7/89 उस समय स्वयं लक्ष्मीजी डंठल वाले कमल का छत्र उनके ऊपर लगाकर खड़ी हो गईं।
लज्जा
1. लज्जा :-[लज्ज्+अ+टाप्] शर्म, शर्मीलापन, विनय।
लज्जा तिरश्चां यदि चेतसि स्यादसंशयपर्वतराजपुत्र्याः। 1/48 यदि पशु पक्षियों में भी मनुष्य के समान लज्जा हुआ करती तो पार्वतीजी के। नितम्बिनीमिच्छसि मुक्तलज्जां कण्ठे स्वयंगहनिषक्तबाहुम्। 3/7 वह स्त्री सब लाज-शील छोड़कर आपके गले से आ लगे। अंक मारोपयामास लज्जमानामरुन्धती। 6/91
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