________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
658
www. kobatirth.org
1.
2. सुरपतिधनु [सुर् + पति + धनुस् ] इंद्रधनुष ।
तत्रागारं धनपति गृहानुत्तरेणास्मदीय
कालिदास पर्याय कोश
यदि तुम्हारे साथ बिजली है तो उन भवनों में भी चटकीली नारियाँ हैं, यदि तुम्हारे पास इन्द्रधनुष है तो उन भवनों में भी रंग-बिरंगे चित्र लटके हुए हैं। यदि तुम मृदु गंभीर गर्जन कर सकते हो तो वहाँ भी संगीत के साथ मृदंग बजते हैं।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दूराल्लक्ष्यं सुरपतिधनुश्चारुणा तोरणेन । उ० मे० 15
वहीं कुबेर के भवन से उत्तर की ओर इन्द्रधुनष के समान सुन्दर गोल फाटक वाला हमारा घर तुम्हें दूर से ही दिखाई पड़ेगा ।
उच्च
उच्च - [उद् + चित् + ड] ऊँचा, लंबा, उन्नत, उत्कृष्ट ।
क्षुद्रोऽपि प्रथम सुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर्यस्तथोच्चैः । पू० मे० 17
जब दरिद्र लोग भी आए हुए मित्र के उपकार का ध्यान करके अच्छा सत्कार करने में नहीं चूकते, तब आम्रकूट जैसे ऊँचों का तो कहना ही क्या।
पश्चादुच्चैर्भुजतरुवनं मण्डलेनाभिलीनः
सान्ध्यं तेजः प्रतिनवजपापुष्परक्तं दधानः । पू० मे० 40
सांझ की पूजा हो चुकने पर तुम सांझ की ललाई लेकर उन वृक्षों पर छा जाना, जो उनके ऊँचे उठे हुए बाँह के समान खड़े होंगे ।
या वः काले बहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमाना
मुक्ताजाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम् । पू० मे0 67
ऊँचे-ऊँचे भवनों वाली अलका पर वर्षा के दिनों में बरसते हुए बादल ऐसे छाए रहते हैं, जैसे कामिनियों के सिर पर मोती गुँथे हुए जूड़े।
2. तुंग- [तुञ्ज + घञ्, कुत्वम् ] ऊँचा, उन्नत, लंबा, उत्तुंग, प्रमुख ।
अध्वक्लान्तं प्रतिमुखगतं सानुमानाभ्रकूट
स्तुङ्गेन त्वां जलद शिरसा वक्ष्यति श्लाघ्यमानः । पू० मे० 19
For Private And Personal Use Only