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कालिदास पर्याय कोश
सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती काय येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्यः। पू० मे० 31 हे बड़भागी मेघ! अपनी यह वियोग की दशा दिखाकर यह बता रही होगी कि मैं तुम्हारे वियोग में सूखी जा रही हूँ। तुम ऐसा उपाय करना कि उस बेचारी का दुबलापन दूर हो जाय। वय - [अज् + असुन्, वीभावः] आयु, जीवन का कोई काल या समय। नाप्यन्यस्मात्प्रणयकलहाद्विप्रयोगोपपत्तिवित्तेशानां न च खलु वयो यौवनादन्यदस्ति। उ० मे0 4 प्रेम में रूठने को छोड़कर और कभी किसी का किसी से बिछोह नहीं होता और जवानी की अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था वहाँ नहीं पाई जाती।
अस्त्र (आँसू) 1. अश्रु - [अश् + क्रुन्] आँसू।
नीता रात्रिः क्षण इव मया सार्धमिच्छारतैर्या तामेवोष्णैर्विरहमहती मश्रुभिर्यापयन्तीम्। उ० मे० 31 जो प्यारी, मेरे साथ जी भरकर संभोग करके, पूरी रात क्षणभर के समान बिता देती थी, वही अपनी रातें गर्म आँसू बहा-बहाकर बिता रही होगी। पश्यन्तीनां न खलु बहुशो न स्थलीदेवतानां मुक्तास्थूलास्तरु किसलयेष्वभुलेशाः पतन्ति । उ० मे० 49 वन के देवता भी मेरी दशा पर तरस खाकर अपने मोती के समान बड़े-बड़े
आँसू वृक्षों के कोमल पत्तों पर दुलकाया करते हैं। 2. अस्त्र - [अस् + रन्] आँसू, रुधिर।
प्रालेयास्त्रं कमलवदनात्सोऽपि हर्तुं नलिन्याः प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पाभ्यसूयः। पू० मे0 43 वे भी उस समय अपनी प्यारी कमलिनी के मुख कमल पर पड़ी हुई ओस की बूंदे पोंछने के लिए आ गए होंगे। तुम उनके हाथ न रोक बैठना, नहीं तो वे बुरा मान जाएँगे।
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