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कालिदास पर्याय कोश लिए झुकोगे, उस समय दूर से पतली दिखाई देने वाली उस नदी की चौड़ी धारा। नेत्रा नीताः सततगतिना यद्विमानाग्रभूमिरालेख्यानां नवजलकणैर्दोषमुत्पाद्य सद्यः । उ० मे० 8 तुम्हारे जैसे बहुत से बादल, वायु के झोंके के साथ वहाँ के सतखंडे भवनों के ऊपरी खंडों में घुसकर भीत पर टंगे हुए चित्रों को अपने जल कणों से भिगोकर मिट देते हैं। त्वत्संरोधापगमविशदैश्चन्द्रपादैनिशीथे व्यालुम्पन्ति स्फुटजललवस्यन्दि- नश्चन्द्रकान्ताः। उ० में०१ आधी रात के समय, खुली चाँदनी में, झालरों में लटके हुए चन्द्रकान्त मणियों से टपकता हुआ जल। त्वामप्यत्रं नवजलमयं मोचयिष्यत्यवश्यं प्रायः सर्वो भवति करुणा वृत्तिरार्द्रान्तरात्मा। उ० मे0 35 तुम भी उसकी दशा पर अपने नये जल के आँसू बहाए बिना न रह सकोगे क्योंकि दूसरों का दुख देखकर कौन ऐसा कोमल हृदय वाला है, जो पसीज न जाय। तामुत्थाप्य स्वजलकणिका शीतलेनानिलेन प्रत्याश्वतां सामभिनवैर्जाल कैर्मालतीनाम्। उ० मे० 40 मालती के नये फूलों के समान कोमल मेरी प्यारी को, अपने जल की फुहारों से ठंडा किया हुआ वायु चलाकर जगा देना। निःशब्दोऽपि प्रदिशसि जलं याचितश्चातकेभ्यः प्रत्युक्तं हि प्रणयिषु सतामीप्सितार्थ क्रियैव। उ० मे० 57 तुम बिना उत्तर दिए ही चातक को जल दे देते हो। सज्जनों की रीति ही यह है कि जब कोई उनसे कुछ माँगे तो वे मुँह से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही
उत्तर दे डालते हैं। 5. तोय - [तु+ विच्, तवे पूत्यें याति - या + क नि० साधुः] पानी।
तस्यास्तिक्तैर्वनगजमदैर्वासितं वान्तवृष्टिजम्बूकुञ्ज प्रतिहतरयं तोयमादाय गच्छेः । पू० मे० 21
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