________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
672
कालिदास पर्याय कोश आसेवन्ते मधु रतिफलं कल्पवृक्षप्रसूतं त्वद्गम्भीरध्वनिषु शनकैः पुष्करेष्वाहतेषु। उ० मे० 5 कामदेव को उभारने वाला वह मधु पी रहे होंगे, जो उन वाद्यों के मंद-मंद बजने पर कल्पवृक्ष से निकलता है और जो तुम्हारे गंभीर गर्जन के समान ही गूंजा करते हैं। लाक्षारागं चरणकमलन्यासयोग्यं च यस्यामेकः सूते सकलमबलामण्डनं कल्पवृक्षः। उ० मे० 12 पैरों में लगाने का महाबर आदि स्त्रियों के सिंगार की जितनी वस्तुएँ हैं, सब
अकेले कल्पवृक्ष से ही मिल जाती हैं। 3. मन्दार - [मन्द् + आरक्] कल्पवृक्ष, मदार वृक्ष, इन्द्र के नंदन कानन स्थित
पाँच वृक्षों में से एक। गत्युत्कम्पादलक पतितैर्यत्र मन्दारपुष्पैः पत्रच्छेदैः कनक कमलैः कर्णविभ्रंशिभिश्च। उ० मे011 जब कामिनी स्त्रियाँ जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाकर जाने लगती हैं उस समय उनकी चोटियों में गुंथे हुए कल्पवृक्ष के फूल और पत्ते खिसककर निकल जाते हैं, कानों पर धरे सोने के कमल गिर जाते है। मन्दार वृक्ष- [मन्द् + आरक् + वृक्षः] कल्पवृक्ष, मदार वृक्ष, इन्द्र के नंदन कानन स्थित पाँच वृक्षों में से एक। यस्योपान्ते कृतक तनयः कान्तया वर्धितो मे हस्त प्राप्य स्तबकनमितो बालमन्दारवृक्षः। उ० मे0 15 उसी के पास एक छोटा सा कल्पवृक्ष है जिसे मेरी स्त्री ने पुत्र के समान पाल रखा है। वह फूलों के गुच्छों से इतना झुका हुआ होगा कि खड़े-खड़े ही वे गुच्छे हाथ से तोड़े जा सकते हैं।
काञ्ची 1. काञ्ची - [काञ्च् + इनि = कांचि + ङीष्] मेखला, करधनी।
वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणायाः। पू० मे० 30 जिसकी उछलती हुई लहरों पर पक्षियों की चहचहाती हुई पाँतें ही करधनी - सी दिखाई देंगी।
For Private And Personal Use Only