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कालिदास पर्याय कोश
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्तः स कामीनीत्वा मासन्कनकवलयभ्रंश रिक्तप्रकोष्ठः। पू० मे० 2 वह यक्ष अपनी पत्नी से बिछुड़ने पर सूखकर काँटा हो गया, उसके हाथ के सोने के कंगन ढीले होकर निकल गये और यों ही रोते-कलपते उसने कुछ महीने तो। सौदामन्याकनकनिकषस्निग्धयादर्शयोर्वी तोयोत्सर्ग स्तनितमुखरो मास्मभूर्विक्लवास्ताः। पू० मे० 41 तुम कसौटी में सोने के समान दमकने वाली बिजली चमकाकर उन्हें ठीकठीक मार्ग दिखा देना। तुम गरजना-बरसना मत! नहीं तो वे घबरा उठेगी। अन्वेष्टव्यैः कनकसिकता मुष्टिनिक्षेप गूढ़ेः संक्रीडन्तेमणिभिरमरप्रार्थिता यत्र कन्याः। उ० मे० 6 कन्याएँ अपनी मुट्ठियों में रत्न लेकर उनको सुनहरे बालू में डालकर छिपाने
और ढूँढ़ने का खेल खेला करती हैं। गत्युत्कम्पादलकपतितैर्यत्र मन्दारपुष्पैः पत्रच्छेदैः कनककमलैः कर्णविभ्रंशिभिश्च। उ० मे011 जब कामिनी स्त्रियाँ जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाकर जाने लगती हैं, तब उनकी चोटियों में गुंथे हुए कल्पवृक्ष के फूल और पत्ते खिसककर निकल जाते हैं, कानों पर धरे हुए सोने के कमल गिर जाते हैं। तस्यातीरे रचितशिखर: पेशलैरिन्द्रनीलैः क्रीडाशैलः कनककदली वेष्टन प्रेक्षणीयः। उ० मे० 17 उस के तीर पर एक बनावटी पहाड़ है, जिसकी चोटी नीलमणि की बनी हुई है
और जो चारों ओर से सोने के केलों से घिरा होने के कारण देखते ही बनता है। मत्वागारं कनकरुचिरं लक्षणैः पूर्वमुक्तः तस्योत्संगे क्षितितलगतां तां च दीनां ददर्श। उ० मे० 62 अपने मित्र के बताए हुए चिह्नों से उसने वियोगी यक्ष का सोने के समान चमकता हुआ भवन पहचान लिया और उसने देखा कि यक्ष की स्त्री उस भवन
में धरती पर पड़ी हुई है। 2. काञ्चन - [काञ्च + ल्युट्] सुनहरा, सोने का बना हुआ, सोना।
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