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मेघदूतम्
अम्भोबिन्दुग्रहण चतुराँश्चातकान्वीक्षमाणाः श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः। पू० मे० 23 ऊपर ही ऊपर जल की बूंदें घूटते हुए चातकों को देखने वाले और पाँत बाँधकर उड़ती हुई बगलियों को एक-एक करके गिनने वाले। उदक - [उन्द् + ण्वुल् नि० नलोपः] पानी। यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु स्निग्धच्छाया तरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु। पू० मे० 1 यक्ष ने रामगिरि के उन आश्रमों में डेरा डाला जहाँ के कंडों, तालाबों और बावड़ियों का जल श्री जानकी जी के स्नान से पवित्र हो गया था और जहाँ घनी
छाया बाले बहुत से वृक्ष जहाँ-तहाँ लहलहा रहे थे। 4. जल - [जल् + अक्] पानी।
विश्रान्तः सन्व्रज वननदीतीर जातानि सिञ्चन्द्यानानां नवजलकणैर्वृथिका जालकानि। पू० मे० 28 वहाँ थकावट मिटाकर तुम जंगली नदियों के तीरों पर उपवनों में खिली हुई जूही की कलियों को जल की फुहारों से सींचते हुए। तत्र स्कन्दं नियतवसतिं पुष्पमेघीकृतात्मा पुष्पासारैः स्नपयतुभवान्व्योम- गङ्गाजलाः । पू० मे० 47 वहाँ स्कन्द भगवान भी सदा निवास करते हैं। इसलिये वहाँ पहुँचकर तुम फूल बरसाने वाले बादल बनकर उनपर आकाशगंगा के जल से भीगे हुए फूल बरसाकर उन्हें स्नान करा देना। आराध्यैनं शरवणभवं देवमुल्लङ्घिताध्या सिद्धद्वन्द्वैर्जलकण भयाद्वीणिभिर्मुक्त मार्गः। पू० मे० 49 स्कन्द भगवान की पूजा करके जब तुम आगे बढ़ोगे तो हाथों में वीणा लिए हुए अपनी स्त्रियों के साथ वे सिद्ध लोग तुम्हें मिलेंगे, जो अपनी वीणा वर्षा के जल से भीगकर बिगड़ जाने के डर से तुमसे दूर ही रहेंगे। त्वय्यादातुं जलमवनते शाङ्गिणो वर्णचौरे तस्याः सिन्धोः पृथुमपि तनुं दूरभावात्प्रवाहम्। पू० मे० 50 जब तुम विष्णु भगवान का साँवला रूप चुराकर चर्मण्वती का जल पीने के
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