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मेघदूतम्
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स प्रत्यग्रैः कुटजकुसुमैः कल्पितार्घाय तस्मै
प्रीतः प्रीतिमुखवचनं स्वागतं व्याजहार । पू० मे0 4
उसने झट कुटज के खिले हुए फूल उतारकर पहले तो मेघ की पूजा की और फिर कुशल-मंगल पूछकर उसका स्वागत किया।
2. आराधना [ आ + राध् + ल्युट् ] सेवा, पूजन, उपासना, अर्चना ।
आराध्यैनं शरवणभवं देवमुल्लङिघताध्वा
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सिद्धद्वन्द्वैर्जलकणभया द्वीणिभिर्मुक्त मार्गः । पू० मे० 49
स्कन्द भगवान् की पूजा करके जब तुम आगे बढ़ोगे, तो हाथों में वीणा लिए हुए अपनी स्त्रियों के साथ वे सिद्ध लोग तुम्हें मिलेंगे, जो अपनी वीणा भीगकर बिगड़ जाने के डर से तुमसे दूर ही रहेंगे ।
3. बलि - [ बल् + इनि] आहुति, भेंट चढ़ावा
कुर्वन्संध्याबलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीया
मामन्द्राणां फलमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम् । पू० मे० 38
जब महादेवजी की सांझ की सुहावनी आरती होने लगे तब तुम भी अपने गर्जन का नगाड़ा बजाने लगना। तुम्हें अपने मंद गंभीर गर्जन का पूरा-पूरा फल मिल जाएगा।
तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासमर्धेन्दुमौले
शश्वत्सिद्धैरुपचित बलिं भक्तिनम्रः परीयाः ।
वहीं एक शिला पर तुम्हें शिवजी के पैर की छाप बनी हुई मिलेगी, जिस पर सिद्ध लोग बराबर पूजा चढ़ाते हैं ।
आलोके ते निपतति पुरा सा बलि व्याकुला वा
मत्सादृश्यं विरहतनु वा भावगम्यं लिखन्ती । उ० मे० 25
1. अवस्था
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या तो वह तुम्हें वहाँ देवताओं को पूजा चढ़ाती मिलेगी या अपनी कल्पना से मेरे इस विरह से दुबले शरीर का चित्र बनाती मिलेगी।
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अवस्था
[ अव + स्था + अङ् ] काल, दशाक्रम, हालत, दशा, स्थिति ।